Hartalika Teej Vrat Katha: हरतालिका तीज का व्रत (Hartalika Teej Vrat 2022)  पूर्ण रूप से माता
पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है. माता पार्वती (Maa Parvati) ने कठिन तपस्या कर के भगवान शिव (Lord Shiva) को अपने पति के रूप में पा लिया . इस कथा में भी इसी बात का वर्णन देखने को
मिलता है. आपको बता दें कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की हस्त नक्षत्र संयुक्त
तृतीया के दिन इस व्रत को धारण करने की परंपरा है. इसे कजरी तीज के नाम से भी जाना
जाता है. इस व्रत को धारण करने के बाद आपको पूरे दिन कुछ भी खाने पीने की मनाही
होती है और इस व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है. वहीं आपको बता दें कि
व्रत के दिन शाम को कथा कहने के बाद आप फल आदि ग्रहण कर सकते हैं.

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इस व्रत में कथा सुनने का खास महत्व माना गया
है. इस दिन शाम को पूजा करने के बाद कथा सुनी जाती है और फिर रात को जागरण करने का
रिवाज है. इस व्रत के दिन मिट्टी के शिव पार्वती की पूजा की जाती है. वहीं इस दिन मां
पार्वती
को बांस की डलिया में सुहाग का सामान अर्पित किया जाता है. तीनों देवताओं
को वस्त्र अर्पित करने के पश्चात् हरितालिका तीज व्रत कथा सुनना बहुत कल्याणकारी
माना जाता है. इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त की बात करें, तो वह सुबह साढ़े छह बजे
से लेकर 8 बजकर 33 मिनट तक है.

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हरतालिका तीज व्रत कथा

पौराणिक कथा के अऩुसार, माता पार्वती ने भगवान
शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. दरअसल मां पार्वती के मन
में बचपन से ही भगवान शिव के प्रति सच्चा प्रेम था और वे उन्हें पति के रूप में
पाने के लिए जन्म जन्मांतर से उनकी पूजा कर रहीं थीं. इसके लिए उन्होंने हिमालय
पर्वत के गंगा तट पर बचपन से ही कठोर तपस्या शुरू कर दी थी. यहां तक कि माता
पार्वती ने इस तप में अन्न और जल का त्याग कर दिया था. वह मात्र सूखे पत्ते खाकर
अपनी साधना में लीन रहती थीं. माता पार्वती की यह दशा देख उनके माता-पिता बहुत
दुखी हो गए थे. एक दिन देवऋषि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह के
लिए प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए. इस प्रस्ताव के बाद उनके माता-पिता को
जितनी खुशी हुई, मां पार्वती को उतना ही ज्यादा दुख हुआ. क्योंकि उन्होंने मन ही
मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था. जिसके चलते माता पार्वती ने यह शादी का
प्रस्ताव ठुकरा दिया.

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इसके बाद पार्वती जी ने अपनी एक सखी से कहा कि
वह सिर्फ भोलेनाथ को ही पति के रूप में स्वीकार करेंगी और इसके बाद मां पार्वती
सखी की सलाह पर घने वन में एक गुफा में जाकर भगवान शिव की अराधना करने लगीं.
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर
उन्होंने विधिवत भगवान शिव की पूजा की और रातभर जागरण किया. पार्वती जी की इस अटूट
श्रद्धा और तप को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने मां पार्वती को पत्नी
के रूप में स्वीकार कर लिया .

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मान्यतानुसार इस व्रत को धारण करने वाली
महिलाओं को बहुत लाभ मिलता है. उनके पति की आयु लंबे होने के साथ-साथ उन्हें हर
क्षेत्र में सफलता मिलती है और वहीं माना जाता है की जो भी युवती इस व्रत को पूरे
विधि-विधान और श्रद्धापूर्वक व्रत करती है, उसे इच्छानुसार वर की प्राप्ति होती है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.