आंखें (Eyes), हमारे शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण, नाजुक और संवेदनशील अंग है. सुबह सो कर उठने से लेकर रात को सोने तक ये बिना रूके और बिना थके लगातार काम करती रहती हैं. आंखों (Eyes) के बिना जीवन में कोई रंग नहीं रह जाते. इसलिए बहुत जरूरी है कि नवजात शिशुओं से लेकर किशोर उम्र के बच्चों के माता-पिता उनकी आंखों के स्वास्थ को लेकर कोई लापरवाही न बरतें. हालांकि, कुछ बच्चे जन्म से ही देख नहीं पाते और वे जन्मजात दृष्टिहीन होते हैं. पर सवाल ये है कि बच्चों में ये समस्या होती क्यों है?

तो, आइए जानते हैं बच्चों में आंखों की रोशनी कम होने के कारण, इसके लक्षण और उपचार. साथ ही हम ये भी जानेंगे कि बच्चों को इस समस्या से कैसे बचाया जा सकता है.

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बच्चों में कमजोर आंखों का कारण

1.तंत्रिका संबंधी समस्याएं

बच्चों में कमजोर आंखों की समस्या तंत्रिका संबंधी समस्याओं के कारण हो सकती है. जैसे कि मस्तिष्क के उन हिस्सों के नर्व का प्रभावित होना जो कि दृष्टि को नियंत्रित करती हैं. ऐसे में आंखों से जुड़ी नर्व का डैमेज होना बच्चों में कमजोर आंखों और अंधापन को कारण बन सकता है.

2.खराब लाइफ स्टाइल के कारण

आजकल किशोर उम्र के बच्चों पर एक तो पढ़ाई का बहुत दबाव है, दूसरा गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण उनकी आंखों पर ‘डिजिटल स्ट्रेस’ काफी बढ़ रहा है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि माता-पिता उन्हें आंखों की देखभाल करने के लिए प्रेरित करें. उन्हें समझाएं कि पोषक भोजन, पर्याप्त आराम और गैजेट्स का सीमित इस्तेमाल आंखों को स्वस्थ रखने और बढ़ती उम्र के साथ आंखों की रोशनी बनाए रखने के लिए कितना जरूरी है.

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3.जन्म से

गर्भावस्था के 20 से 40वें हफ्ते के बीच बच्चे की आंख में रेटिना पूरी तरह विकसित होने की प्रक्रिया चलती है. इस दौरान किसी गड़बड़ी के कारण या फिर समय से पहले जन्म के कारण बच्चे को आंखों से जुड़ी गंभीर समस्या रह सकती है.

4.आंखों से जुड़ी बीमारियां

ग्लूकोमा, मोतियाबिंद, रेटिनोब्लास्टोमा जैसे कैंसर जैसी स्थितियां और रेटिना संबंधी रोग के कारण भी बच्चों में आंखों से जुड़ी समस्याएं होती हैं.

5.आनुवंशिक स्थितियां

ऐल्बिनिज़म और रेटिनाइटिसपिगमेंटोसा जैसी आनुवंशिक स्थितियों के कारण भी बच्चों में कमजोर आंखें और अंधेपन की समस्या हो सकती है.

लक्षण

1. अगर आपका बच्चा आंखों को चुंदी या स्क्विंट करके देख रहा है.

2. ज़ोर-ज़ोर से और बार-बार आंख रगड़ता हो.

3. एक आंख को बंद करता हो या पढ़ते या टीवी देखते समय सिर एक ओर झुका लेता हो.

4. टीवी, कम्प्युटर या मोबाइल की स्क्रीन को बहुत पास से देखता हो.

5. किताबों को अपनी आंखों के बहुत पास लाकर पढ़ता हो.

6. लगातार कई दिनों से आंखों और सिर में दर्द रह रहा हो.

7. बार-बार या सामान्य से अधिक पलकें झपकाने की समस्या हो.

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उपचार और बचाव 

सबसे पहले तो बच्चों में इन लक्षणों के दिखने पर डॉक्टर से आई चेकअप करवाएं. फिर स्थिति के अनुसार उसका इलाज करवाएं. ज्यादातर स्थिति में बच्चों को डॉक्टर चश्‍मा पहनने और आई ड्रॉप्‍स लेने का सुझाव देते हैं. वहीं, गंभीर स्थितियों में सर्जरी की मदद से इसका इलाज किया जा सकता है. इसके अलावा आप बच्चों की डाइट और लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करके उनकी आंखों को हेल्दी रख सकते हैं. जैसे कि

1. विटामिन ए से भरपूर चीजों का सेवन करवाएं. जैसे कि हरी पत्तेदार सब्जियां, अंडा, दूध, गाजर, पीली या नारंगी सब्जियां, पालक, शकरकंद, पपीता, दही और सोयाबीन.

2. दालें, सूखे मेवे और बीज का सेवन करवाएं.

3. मछली जैसे ओमेगा-3 से भरपूर फूड्स का सेवन करवाएं.

डिस्क्लेमर: ये जानकारी एक सामान्य सुझाव है. इसे किसी तरह के मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें. आप इसके लिए अपने डॉक्टरों से सलाह लें.