भारत में कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं को देखते हुए एक और स्वदेशी वैक्सीन लॉन्च हो गई है. विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर सबसे ज्यादा
बच्चों को प्रभावित कर सकती है. जिसके बाद से बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन की
मांग की जा रही थी.

अब भारत की कंपनी जायडस कैडिला ने अपनी कोरोना वैक्सीन ZyCoV-D के
लिए भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) से मंजूरी मांगी है. यह वैक्सीन बच्चों
के लिए काफी सुरक्षित बताई जा रही है. साथ ही यह पहली
पालस्मिड DNA वैक्सीन है. जिसके साथ ही इसे बिना सुई के फार्माजेट
तकनीक से लगाया जाएगा.

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बिना सुई के कैसे लगेगी ये वैक्सीन

जायडस कैडिला कंपनी की यह नई वैक्सीन ZyCoV-D बिना सुई के लगाई
जाएगी. यह भारत की पहली वैक्सीन है जो 12 से 18 साल तक के बच्चों के लिए सुरक्षित
बताई जा रही है. इस वैक्सीन को लगाने के
लिए सुई की जरूरत नहीं होती. इस वैक्सीन को फार्माजेट सुई रहित तकनीक (PharmaJet needle free applicator) तकनीक की
मदद से लगाया जाएगा. इस वैक्सीन को दिना सुई वाले इंजेक्शन में भरा जाता है, जिसके बाद उसे एक मशीन में लगाकर वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्ति की
बांह पर लगाना होता हैं. फिर मशीन पर लगे बटन को दबाने के बाद टीका की दवा शरीर के
अंदर चली जाती है. हालांकि इस वैक्सीन की तीन डोज लेनी आवश्यक होंगी.

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यह वैक्सीन बर्बाद नहीं हो सकती

कंपनी ने हर साल इस वैक्सीन की 10 से 12 करोड़
डोज बनाने की बात कही है. इस नई वैक्सीन के साथ बाकी वैक्सीन जैसा झंझट नहीं है.
इस वैक्सीन को स्टोर करने के लिए बाकी वैकसीन की तरह बेहद ठंडे तापमान की
जरूरत नहीं होती, इससे होगा ये कि जैसे बाकी वैक्सीन के बर्बाद होने की खबर सामने
आई थी ऐसा इस वैक्सीन के साथ नहीं होगा क्योंकि इस वैक्सीन की थर्मोस्टेबिलिटी काफी
अच्छी है.  

क्या पालस्मिड आधारित DNA वैक्सीन

पालस्मिड आधारित DNA वैक्सीन के जरिए
एंटीजन-विशिष्ट इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम किया जाता है, जिससे मनुष्य के शरीर को इन्फेक्शन से लड़ने में मदद मिलती है. इस नई
वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री तक के तापमान में रखा जा सकता है. जायडस की वैक्सीन टीके
को लेवल 1 की लैब में ही बनाया जा सकता है. इससे वैक्सीन के बड़े पैमाने पर उत्पाद
में आसानी होती है साथ ही इससे वैक्सीन ज्यादा कारगर साबित होती है.

यह वैक्सीन कितनी भरोसेमंद है

इस वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के लिए करीब
28 हजार लोगों ने भाग लिया था. भारत में किसी भी वैक्सीन पर इससे अधिक संख्या में
ट्रायल नहीं हुआ हैं. इस वैक्सीन को 66 प्रतिशत प्रभावी माना जा रहा है. जिन लोगों
को अब तक यह वैक्सीन लगी हैं उनमें कोरोना संक्रमण के सामान्य लक्षण ही देखे गए
हैं.

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