देश में ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque), ताजमहल और कुतुब मीनार के हिंदू धर्म स्थल होने का विवाद अब अजमेर शरीफ दरगाह तक पहुंच गया है. अजमेर (Ajmer) की हजरत ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह (Hazrat Khwaja Garib Nawaz Dargah) को लेकर हिंदूवादी संगठन महाराणा प्रताप सेना ने एक दावा किया है कि राजस्थान के अजमेर (Ajmer) में सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती का दरगाह (Mausoleum) कभी मंदिर था और इसका सर्वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से कराया जाना चाहिए.

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महाराणा प्रताप सेना के राजवर्धन सिंह परमार ने दावा किया है कि दरगाह की खिड़कियों और दीवारों पर हिंदू प्रतीक मौजूद हैं. उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केंद्र सरकार को पत्र लिख कर इस मामले जांच कराने की मांग की है.हालांकि, खादिमों (सेवकों) ने राजवर्धन सिंह के दावें को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ऐसा कोई प्रतीक नहीं था.

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हरिभूमि के लेख के अनुसार, महाराणा प्रताप सेना के राजवर्धन सिंह परमार ने कहा, “पहले ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह एक प्राचीन हिंदू मंदिर था. खिड़कियों और दीवारों पर स्वास्तिक के चिन्ह बने हुए हैं. उन्होंने मांग की है कि एएसआई दरगाह का सर्वेक्षण कराया जाएं. वहीं, दरगाह के खादिमों के निकाय अंजुमन सैयद जदगन के अध्यक्ष मोइन चिश्ती ने कहा, “राजवर्धन सिंह परमार का ये दावा निराधार है.

क्योंकि मकबरे में ऐसा कोई प्रतीक नहीं है. मोइन चिश्ती ने कहा, “प्रत्येक वर्ष यहां मुसलमान और हिन्दू आते है. उन्होंने कहा कि यह दरगाह 850 साल से है. ऐसा कोई सवाल कभी नहीं उठा है. आज भारत में एक खास तरह का माहौल है, जो कभी नहीं था.

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उन्होंने कहा, “ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर सवाल उठाने का मतलब करोड़ों लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है, जो अपने-अपने धर्म को मानते हैं.” चिश्ती ने कहा, “ऐसे तत्वों को जवाब देना सरकार का काम है. खादिम कमेटी के सचिव वाहिद हुसैन चिश्ती ने कहा, “यह सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश हो रही है.”

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