हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री (Geetanjali Shree) के उपन्यास ‘टूंब ऑफ सैंड’ को इंटरनेशनल बुकर प्राइज (International Booker Prize) से सम्मानित किया गया है. ‘टूंब ऑफ सैंड’ (Tomb of Sand) हिन्दी ही नहीं बल्कि किसी भी भारतीय भाषा में लिखा गया ऐसा पहला उपन्यास है जिसे इंटरनेशनल बुकर प्राइज से नवाजा गया है. हर साल इंग्लिश में ट्रांसलेट की हुई और इंग्लैंड/आयरलैंड में छपी किसी एक अंतरराष्ट्रीय किताब को इंटरनेशनल बुकर प्राइज के लिए चुना जाता है. इस पुरस्कार की शुरूआत वर्ष 2005 में हुई थी.

इंटरनेशनल बुकर प्राइज से सम्मानित ‘टूंब ऑफ सैंड’ गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास ‘रेत-समाधि’ (Ret Samadhi) का ट्रांसलेशन है. अंग्रेजी भाषा में इसका ट्रांसलेशन मशहूर अनुवादक डेजी रॉकवेल ने किया है. ‘रेत समाधी’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है. 

इंटरनेशनल बुकर प्राइज मिलने के बाद गीतांजलि श्री ने अपनी थैंक्यू स्पीच में कहा, “मैंने कभी बुकर प्राइज जीतने की कल्पना नहीं की थी. कभी सोचा ही नहीं कि मैं ये कर सकती हूं. ये एक बड़ा पुरस्कार है. मैं हैरान हूं, प्रसन्न हूं, सम्मानित महसूस कर रही हूं और बहुत कृतज्ञ महसूस कर रही हूं.”

लंदन में गुरुवार को हुए समारोह में नई दिल्ली की 64 वर्षीय लेखिका गीतांजलि श्री को 50 हजार पाउंड सम्मान के तौर पर मिले, जिसे वह उपन्यास की ट्रांसलेटर डेजी रॉकवेल के आधा-आधा शेयर करेंगी. 

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‘रेत समाधि’ उपन्यास उत्तर भारत में रह रही एक 80 वर्षीय महिला पर आधारित है. जोकि पाकिस्तान जाना चाहती है. किताब की 80 वर्षीय नायिका मा, अपने परिवार की व्याकुलता के कारण, पाकिस्तान की यात्रा करने पर जोर देती है, साथ ही साथ विभाजन के अपने किशोर अनुभवों के अनसुलझी पीड़ा का सामना करती है. 

इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीतने की रेस में बोरा चुंग की ‘कर्स्ड बनी’, जॉन फॉसे की ‘ए न्यू नेम: सेप्टोलॉजी VI-VII’, मीको कावाकामी की किताब ‘हेवेन’, क्लाउडिया पिनेरो की लिखी ‘एलेना नोज़’ और ओल्गा टोकार्ज़ुक की लिखी ‘द बुक्स ऑफ जैकब’ शामिल थी. 

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