बीते रविवार 15 अगस्त को अफगानिस्तान में आतंकवादी समूह को रोकने के लिए संघर्ष कर रहे सरकारी बलों को पीछे हटना पड़ा. इस वजह से तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में प्रवेश कर लिया. अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद से हर दिन हालात खराब होते जा रहे हैं.

अफगानिस्तान में फंसे दूसरे देशों के नागरिकों के साथ ही वहां के निवासी भी देश छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में ये जानना बहुत जरूरी है कि तालिबान का इतिहास क्या है? आइए जानते है इस के इस्तिहास और इसके कट्टर कानूनों के बारे में…

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तालिबान का इतिहास

तालिबान, जिसका अर्थ पश्तो भाषा में “छात्र” है, 1994 में दक्षिणी अफगान शहर कंधार के आसपास से उभरा. यह सोवियत संघ की वापसी और बाद में सरकार के पतन के बाद देश के नियंत्रण के लिए गृहयुद्ध लड़ने वाले गुटों में से एक था.

तालिबान की विचारधारा क्या है?

साल 1997 तक अफगानिस्तान में तालिबान की जडे़ं गहरी जम गई. चाहे देशी हो या फिर विदेशी-हर किसी को तालिबान द्वारा तय सख़्त मानकों के हिसाब से रहना होता था. सत्ता में अपने पांच वर्षों के दौरान, तालिबान ने शरिया कानून का एक सख्त संस्करण लागू किया. महिलाओं को मुख्य रूप से काम करने या पढ़ाई करने से रोक दिया गया था, और जब तक एक पुरुष अभिभावक के साथ नहीं था, तब तक उन्हें अपने घरों तक ही सीमित रखा गया था.

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सार्वजनिक फांसी और कोड़े लगना आम बात थी, पश्चिमी फिल्मों और किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, और इस्लाम के तहत ईशनिंदा के रूप में देखी जाने वाली सांस्कृतिक कलाकृतियों को नष्ट कर दिया गया था. विरोधियों और पश्चिमी देशों ने तालिबान पर आरोप लगाया कि वह उन क्षेत्रों में शासन की इस शैली में वापस लौटना चाहता है – एक ऐसा दावा जो समूह इनकार करता है.

तालिबान के संस्थापक और मूल नेता मुल्ला मोहम्मद उमर थे, जो तालिबान के तख्तापलट के बाद छिप गए थे. उनका ठिकाना इतना गुप्त था कि 2013 में उनकी मृत्यु की पुष्टि उनके बेटे ने दो साल बाद ही की थी.

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05 सालों में 15 बड़े नरसंहार

तालिबान आतंक और ज्यादतियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने बाद 55 पेज की एक रिपोर्ट प्रकाशित की. उसमें कहा गया कि किस तरह अफगानिस्तान के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों पर नियंत्रण करने के लिए तालिबान ने अपने ही लोगों का कत्लेआम किया. रिपोर्ट के अनुसार 1996 से लेकर 2001 के बीच वहां 15 बडे़ नरसंहार हुए. ये कत्लेआम रक्षा मंत्रालय या फिर खुद मुल्ला उमर के जरिए करवाया जाता था.

हिंदुओं और सिखों पर अत्याचार

अफगानिस्तान में हिंदुओं और सिखों की आबादी बहुत प्राचीन समय से रहती आई है. वो वहां के महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक रहे हैं. देश के विकास और व्यापार में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है. लेकिन तालिबान के शासन में आने के बाद उनका पलायन तेजी से भारत और दूसरे देशों की ओर हुआ.

तालिबान ने उन्हें सख्त तौर पर शरिया कानून का पालन करने की हिदायत दी. उन्होंने उनकी संपत्तियों पर कब्जा किया. धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया.

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तालिबान: अंतर्राष्ट्रीय मान्यता

पड़ोसी देश पाकिस्तान सहित केवल चार देशों ने सत्ता में रहते हुए तालिबान सरकार को मान्यता दी. संयुक्त राष्ट्र के साथ अन्य देशों के विशाल बहुमत ने इसके बजाय काबुल के उत्तर में प्रांतों को रखने वाले एक समूह को सही सरकार-इन-वेटिंग के रूप में मान्यता दी.

संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान पर प्रतिबंध लगाए, और अधिकांश देशों ने बहुत कम संकेत दिखाए कि यह समूह को राजनयिक रूप से मान्यता देगा.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि अगर तालिबान सत्ता में आता है और अत्याचार करता है तो अफगानिस्तान एक परिया राज्य बनने का जोखिम उठाता है.

चीन जैसे अन्य देशों ने सावधानी से संकेत देना शुरू कर दिया है कि वे तालिबान को एक वैध शासन के रूप में पहचान सकते हैं.

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