उत्तर प्रदेश का बाराबंकी जिला एक समय अफीम की खेती की वजह से काले सोने के नाम से जाना जाता था. इस समय यह जिला अपनी एक और खेती की वजह से काफी मशहूर है लेकिन वह अफीम नहीं बल्कि पिपरमिंट (मेंथा) हैं. पारंपरिक खेती को छोड़कर इस जिले के किसान मेंथा की खेती कर रहें. जिससे वह अधिक मुनाफा भी कमाते हैं. यह जिला उत्तर प्रदेश के प्रमुख मेंथा उत्पादित स्थानों में से एक है. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक, बाराबंकी जिले में फिलहाल 90 हजार हेक्टेयर की जमीन पर खेती की जा रही है.

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किसानों की किस्मत चमकाती है यह खेती

किसान अकसर फसलों की उपज को लेकर हमेशा परेशान रहते हैं. किसान स्थिर आय नहीं होने के कारण हमेशा चिंतित रहते हैं लेकिन मेंथा यानी पिपरमेंट की खेती किसानों की इन सभी परेशानियों का हल हो सकती है. किसान एक एकड़ में फसल बोकर लगभग एक लाख रुपये तक मुनाफा कमा सकते हैं. यह उनकी आय बढ़ाने के लिए काफी अच्छी खेती साबित होती है. इस खेती के लिए पर्याप्त मात्रा में जल का उपलब्ध होना आवश्यक है.

इस खेती पर किसान क्या कहते हैं

मसौली के एक गांव में एक किसान हरीश चंद्र ने आज तक को दिए इंटरव्यू में बताया, “मैनें एक एकड़ जमीन पर 20-25 हजार की लागत पर मेंथा की खेती की है, अगर बारिश अच्छी रही तो मुझे उम्मीद है कि मेरी फसल 1 लाख रुपये तक बिक जाएगी. किसान के एक और किसान मौर्या ने बताया कि मेंथा की मांग काफी अधिक है. जिस कारण से इसकी खेती करने से यहां के किसानों का काफी फायदा होता है.

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मेंथा की मांग अधिक क्यों है

देश और विदेश में मेथा की मांग काफी अधिक है. दवा से लेकर ब्यूटी पार्लर और खाने-पीने की चीजों में इसका काफी इस्तेमाल होता है. भारत इसका काफी बड़ा निर्यातक देश है और बारंबाकी इलाका भारत का सबसे बड़ा उत्पादक है.

कैसे कर सकते है मेंथा की खेती

किसानों को फरवरी से लेकर अप्रैल तक इसे बोना चाहिए और जून में इसकी कटाई की जा सकती है. मेंथा की यह फसल मात्र 90 दिनों में तैयार हो जाती है इस फसल में किसान कुछ ही समय में काफी मुनाफा कमा लेते हैं. वैसे मेंथा में फसल के दौरान खेतों में हल्की नमी की जरूरत होती है. किसानों के लिए यह जरूरी है कि फसल के दौरान इसमें कई बार पानी देते रहें. वहीं मेंथा की कटाई के समय मौसम साफ होना चाहिए.

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