पोंगल (Pongal) का त्योहार (Festival) हर साल सूर्य के उत्तरायण होने पर मनाया जाता है. उत्तर भारत में मकर संक्रांति (Makar Sankranti) और लोहड़ी (Lohri) मनाई जाती है, वहीं दक्षिण भारत में लोग पोंगल मनाते हैं. पोंगल का त्योहार खेती और फसलों से जुड़ा हुआ है. इस दिन भगवान सूर्यदेव की विशेष पूजा की जाती है. आस्था और समृद्धि के प्रतीक पोंगल का त्योहार चार दिनों तक मनाया जाता है. पोंगल के प्रत्येक दिन का एक अलग नाम होता है.

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पोंगल की कथा (Pongal 2023 Katha)

मदुरै के पति और पत्नी कन्नगी और कोवलन से संबंधित हैं. एक बार कन्नगी के कहने पर कोवलन पायल बेचने के लिए सुनार के पास चला गया. सुनार ने राजा को बताया कि कोवलन जो पायल बेचने आया था, वह रानी से चुराई गई पायल के समान है.

इस अपराध के लिए राजा ने बिना किसी मुकदमे के कोवलन को मौत की सजा सुनाई. इससे क्रोधित होकर कन्नगी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनसे राजा के साथ उनके राज्य को नष्ट करने का वरदान मांगा.

जब राज्य के लोगों को इस बात का पता चला तो वहां की महिलाओं ने मिलकर किलिल्यार नदी के तट पर काली माता की पूजा की. अपने राजा के जीवन और राज्य की रक्षा के लिए कन्नगी में दया जगाने की प्रार्थना की.

स्त्रियों के व्रत से प्रसन्न होकर मां काली ने कन्नगी में करुणा का संचार किया और राजा तथा राज्य की रक्षा की. तब से यह पर्व काली मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है. इस प्रकार पोंगल के चार दिन समाप्त हो जाते हैं.

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ऐसे मनाते हैं पोंगल

पोंगल को दक्षिण भारत में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि इसका इतिहास 1000 साल से भी पुराना है. यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन भेगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)