आज 19 अगस्त को देशभर में बड़ी धूमधाम से जन्माष्टमी (Janmashtami 2022) पर्व मनाया जा रहा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म स्थान मथुरा (Mathura) में बताया जाता है, मथुरा और वृंदावन (Vrindavan) में तो श्रीकृष्ण के अनेक विश्व प्रसिद्ध मंदिर है लेकिन भारत की कई जगहों पर भी भगवान कृष्ण के भव्य मंदिर मौजूद है.

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राजस्थान (Rajasthan) के नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी धाम (Srinathji) अपनी अलग परंपरा के लिए देशभर में जाना जाता है. वल्लभ संप्रदाय की सबसे बड़ी पीठ श्रीनाथजी मंदिर (Srinathji Temple) में साल के 365 दिन भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन भगवान कृष्ण के जन्मदिन यानी कृष्ण जन्माष्टमी पर्व (Krishna janmashtami 2022) का दिन बेहद खास होता है. इस मंदिर में जन्माष्टमी पर भगवान को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. बता दें कि यह परंपरा पिछले चार सौ साल से जारी है. इस बार भी 19 अगस्त को यहां कृष्ण जन्माष्टमी पर यह परंपरा निभाई जाएगी.

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श्रीनाथजी में तोपों से सलामी की परंपरा

राजस्थान के उदयपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर अजमेर-जयपुर राजमार्ग पर मौजूद नाथद्वारा (Nathdwara) में भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर ‘श्रीनाथजी‘ के नाम से जाना जाता है. चार सौ साल पुराने इस मंदिर में बाल गोपाल की पूजा की जाती है. यहां कृष्ण जन्माष्टमी बेहद अलग अंदाज में मनाई जाती है. जब देशभर के कृष्ण भक्तों के साथ विदेशों से भी भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए यहां लोग आते हैं तब रात बारह बजते ही यहां दो तोपों की मदद से कृष्ण भगवान को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. ये तोपें नर और मादा तोपों के नाम से जानी जाती हैं और हर साल इन्हीं तोपों से मंदिर मंडल तथा प्रशिक्षित होमगार्ड सलामी की परंपरा निभाते आ रहे हैं.

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मंदिर में अपने साथ चावल लाते हैं भक्त

यहां आने वाले भक्त अपने साथ चावल के दाने भी लाते हैं. जन्माष्टमी (krishna janmashtami) पर पूजा के बाद इन चावलों को वह अपनी तिजोरी में रखते हैं. ऐसा माना जाता है कि चावल के दानों में उन्हें भगवान श्रीनाथजी की छवि दिखाई देती है.

मंदिर में प्रवेश करते ही अंधा हो गया था नादिर शाह

यहां के लोग बताते हैं कि नादिर शाह 1793 में इस मंदिर पर हमला करने के इरादे से आया. लेकिन जैसे ही वह इस मंदिर में घुसा तो वह अंधा हो गया था. कहते हैं कि मंदिर के बाहर बैठे एक फकीर ने उसे रोका था. जब वह बिना लूट-पाट के मंदिर के बाहर निकला, तब उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई.

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राजस्थान में मौजूद इस नाथद्वारा कस्बे में ब्रज और मेवाड़ की संस्कृति वाले लोग एक साथ रहते हैं. कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण श्रीनाथजी आए थे, तब उनके साथ ब्रज के लोग भी नाथद्वारा आकर यहीं बस गए थे. आज भी वह ब्रज की परंपरा निभाते देखे जा सकते हैं. यहां के गली-मोहल्लों में ब्रज जैसी झलक देखने को मिलती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)