जब भी कभी दोस्ती की मिसाल दी जाती है. तो लोग
कृष्ण और सुदामा (Sudama)  की दोस्ती का जिक्र सबसे पहले करते हैं. भगवान कृष्ण (Lord Krishna) और सुदामा की
दोस्ती को एक आदर्श दोस्ती (Ideal Friendship) के रूप में देखा जाता है और यह हमें बहुत कुछ सिखाती
है. आज के दौर में दोस्ती तो सभी कर लेते हैं, लेकिन उसे निभा पाना सबके बस की बात
नहीं होती है. आज कल ज्यादातर दोस्ती लोग मतलब के लिए करते हैं औऱ मतलब निकल जाने
के बाद वह अपना रास्ता बदल लेते हैं. कई बार तो छोटी सी बात के लिए दोस्त ही आपस
में दुश्मन तक हो जाते हैं. आज के समय में अच्छी दोस्ती निभाने के लिए, हमें कृष्ण
और सुदामा की दोस्ती से सीख लेनी चाहिए और उन बातों को अपने जीवन में लागू करना
चाहिए. तो चलिए आपको आज बताते हैं कृष्ण और सुदामा की दोस्ती से जुड़ी कुछ खास
बातें, जो हम लोगों को जरूर सीखनी चाहिए.

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भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती से सीखने
योग्य बातें –

– सच्ची दोस्ती में कभी भी सफलता हासिल
कर लेने के बाद दोस्त को नहीं भूलना चाहिए. वह किसी भी स्थिति में हो मित्र-मित्र
ही होता है. यही सच्ची मित्रता की निशानी है. भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा के बीच राजा
और रंक जैसा फासला था, लेकिन इसके बावजूद भी कृष्ण ने सुदामा का साथ कभी नहीं
छोड़ा.

– सच्ची दोस्ती में एक दोस्त को दूसरे
दोस्त की गलतियों को माफ कर देना चाहिए. ऐसा करने से दोस्ती और गहरी होती है.
हालांकि आपको कई बार लगता है कि उसने आपके साथ गलत किया है, लेकिन फिर भी जो दोस्ती
में गिले शिकवे न रखे, वही सच्चा दोस्त होता है.

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– एक सच्चे दोस्त को हमेशा अपने मित्र की
मदद करनी चाहिए. यही सच्चे मित्र का धर्म है. कई बार दोस्त को मुसीबत में देखकर
लोग वहां से निकल जाते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए. बल्कि मित्र का दर्जा इतना ऊंचा
है कि इंसान विपत्ति की स्थिति में सबसे पहले अपने मित्र को याद करता है. तो ऐसे
में हमें अपने मित्र का साथ देना चाहिए.

– आज के समय में लोगों की भाषाशैली बहुत
ज्यादा खराब हो चुकी है. जिसके चलते लोग अपने मित्रों से कई बार बहुत असभ्य तरीके
से बातचीत करते हैं. लेकिन ऐसा करने से मन में एक दूसरे के प्रति सम्मान खत्म हो
जाता है और यह आपकी दोस्ती के बीच दीवार खड़ी करने का काम करता है. ऐसा न करके
हमें एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना रखनी चाहिए.

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– हमें कभी भी मित्र के साथ धोखा नहीं
करना चाहिए. आज के दौर में लोग धन को सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं. यहां तक की धन
के लिए वह अपने अमूल्य मित्र से धोखा फिर कर बैठते हैं. शायद उन्हें यह ज्ञान नहीं
होता है कि यह धन तो खर्च हो जाएगा. लेकिन मित्ररूपी धन कभी भी समाप्त नहीं होता
है.