श्रीलंका के प्रधानमंत्री और पीपुल्स पार्टी (SLPP) के नेता महिंदा राजपक्षे ने पीएम के पद से इस्तीफा दे दिया है. श्रीलंका आर्थिक संकट से जूझ रहा है. वहीं, महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे से श्रीलंका में अब राजनीतिक संकट भी उत्पन्न हो गया है. 74 वर्षीय महिंदा राजपक्षे ने साल 2020 में चौथी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप शपथ ली थी. आपको बता दें, महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं. महिंदा ने उन्हें ही अपना इस्तीफा सौंपा है.

बीते दो दशक से राजपक्षे परिवार की श्रीलंका की राजनीति में अच्छी पकड़ रही है. उनकी पीपुल्स पार्टी ने श्रीलंका के आम चुनाव में दो तिहाई बहुमत हासिल कर शानदार जीत दर्ज की थी.

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महिंदा राजपक्षे साल 2005 से 2015 के बीच करीब एक दशक तक देश के राष्ट्रपति रह चुके हैं. इसके बाद वह प्रधानमंत्री बने. वहीं, छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बने. यही नहीं परिवार के आठ सदस्य सरकार में सरकार का हिस्सा हैं.

राजपक्षे परिवार करीब 9 दशकों से श्रीलंका की राजनीति में अपना दखल रखता है. ब्रिटिश शासन में गांव के मुखिया पद से शुरू हुई राजपक्षे परिवार की राजनीति श्रीलंका में राज करने लगी.

रिपोर्ट के मुताबिक, अंग्रेजों के शासन काल में सीलोन यानी की श्रीलंका में मुखिया प्रणाली चलती थी. इसमें विदान अराची होता था. जो इलाके में शांति बनाए रखने, राजस्व संग्रह करने और न्यायिक कार्यों में मदद करने के लिए जिम्मेदार होता था. सिलोन में ऐसे ही एक विदान अराची थे डॉन डेविड राजपक्षे. उनके चा बेटों में से दो बेटे चुनावी राजनीति में सक्रिय हुए. इसमें सबसे पहले डॉन मैथ्यू चुनावी राजनीति में उतरे. वहीं, उनके निधन के बाद उनके छोटे भाई डॉन अल्विन राजनीति में आए. आजादी के बाद अल्विन पहली संसद में पहुंचे नेताओं में शामिल थे.

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मौजूदा समय में श्रीलंका को चला रहे राजपक्षे भाई इन्हीं अल्विन के बटे हैं.अल्विन राजपक्षे श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे. वह सीलोन के पांचवें प्रधानमंत्री विजयानंद दहनायके सरकार में कृषि मंत्री भी रहे थे.

महिंदा सभी भाईयों में सबसे ताकतवर चेहरा थे. 2009 में लिट्टे को खत्म करने के बाद उनकी लोकप्रियता और ऊंचाईयों पर पहुंच गई थी. 1970 में पहली बार सांसद बने महिंदा राजपक्षे लंबे समय तक अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे. 2004 में वह पहली बार प्रधानमंत्री बने. इसके एक साल बाद ही वह राष्ट्रपति बने. 2015 में हार के बाद ऐसा कहा जाने लगा था कि महिंदा का समय समाप्त हो गया. लेकिन महिंदा ने अपनी अलग पार्टी बनाए. 2019 में महिंदा के छोटे भाई गोटाबाय राजपक्षे राष्ट्रपति बने. इसके बाद महिंदा राजपक्षे को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. महज तीन साल पुरानी पार्टी सत्ता में अपना दबदबा स्थापित कर ली.

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