Pakistani former President Pervez Musharraf dies; पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल (सेवानिवृत्त) परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf ) का 79 वर्ष की आयु में दुबई के एक अस्पताल में निधन हो गया. पाकिस्तान के Geo News ने उनके परिवार के हवाले से इस खबर की जानकारी दी है. पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष का दुबई के अमेरिकन हॉस्पिटल में लंबे समय से चली आ रही बीमारी का इलाज चल रहा था. देश की बागडोर संभालने के बाद मुशर्रफ पाकिस्तान के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले राष्ट्रपति रहे. उन्होंने 1998 से 2001 तक पाकिस्तान की स्टाफ कमेटी (CJCSC) के 10वें अध्यक्ष और 1998 से 2007 तक 7वें शीर्ष जनरल के रूप में कार्य किया. पूर्व राष्ट्रपति 1999 में सफल सैन्य तख्तापलट के बाद पाकिस्तान के दसवें राष्ट्रपति बने थे. 2002 में एक जनमत संग्रह के माध्यम से उन्हें राष्ट्रपति के रूप में चुना गया और 2008 तक इस पद पर बने रहे.

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Pervez Musharraf पिछले 8 साल से दुबई में थे 

2007 में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के आरोपों का सामना कर रहे मुशर्रफ पिछले आठ सालों से दुबई में रह रहे हैं. आपको बता दें, मुशर्रफ को पाकिस्तान की इस्लामाबाद की स्पेशल कोर्ट ने दिसंबर 2019 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी. साल 2007 में असंवैधानिक तरीके से इमरजेंसी लागू करने के लिए उनपर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगा. हालांकि बाद में मौत की सजा को लाहौर हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था.

दिल्ली में जन्में थे Pervez Musharraf

11 अगस्त 1943 को नई दिल्ली के दरियागंज में जन्में परवेज मुशर्रफ का परिवार आजादी के बाद पाकिस्तान चला गया था. विभाजन के कुछ दिनों बाद ही उनका परिवार पाकिस्तान पहुंचा और उनके पिता पाकिस्तान विदेश मंत्रालय से जुड़े और पाकिस्तानी सरकार के लिए काम करना शुरू कर दिया. इसके बाद उनके पिता का ट्रांसफर तुर्की हो गया तो 1949 में वे तुर्की चले गए. कुछ सालों तक वे परिवार सहित तुर्की में रहे और वहां रहने के दौरान परवेज मुशर्रफ तुर्की भाषा बोलना सीख गए. बाद में उनका परिवार पाकिस्तान लौटा और मुशर्रफ की पढ़ाई कराची के सेंट पैट्रिक स्कूल में हुई इसके बाद लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में आगे की पढ़ाई हुई.

1961 में सेना में भर्ती हुए, 1998 में जनरल बन गए

साल 1961 में मुशर्रफ पाकिस्तान सेना में भर्ती हुए. साल 1965 में मुशर्रफ ने अपना पहाल युद्ध भारत के खिलाफ लड़ा जिसके लिए उन्हें वीरता पुरस्कार देकर सम्मान दिया गया. साल 1971 में भारत के साथ दूसरे युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई थी. अक्टूबर, 1998 में मुशर्रफ को जनरल का पद मिला और वे सैन्य प्रमुख बन गए. साल 1999 में वह पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने और साल 2002 में आम चुनावों में उन्हें बहुमत मिला.

यहां से बिगड़े पाकिस्तान में उनके लिए हालात

मुशर्रफ को आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश का समर्थन भी मिला. आतंक के खिलाफ युद्ध के कारण ही नाटो सेना के संगठन में पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण सहयोगी देश बना था. मुशर्रफ के समर्थकों ने हमेशा उन्हें एक मजबूत सफल नेता माना लेकिन साल 2007 में लाल मस्जिद में हुई सैनिक कार्रवाई में 105 से ज्यादा लोग मारे गए जिसके बाद लोगों की सोच उनके लिए बदली.

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6 अक्टूबर, 2007 को वे राष्ट्रपति चुनाव जीते लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करना पडा. सुप्रीम कोर्ट ने 2 नवंबर को चर्चा की और 3 नवंबर को मुशर्रफ ने पाकिस्तान में इमरजेंसी लागू कर दी. 24 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और वे पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने. 7 अगस्त, 2008 को पाकिस्तान की नई गठबंधन सरकार ने परवेज मुशर्रफ पर महाभियोग चलाने का फैसला किया और उनके 65वें बर्थडे पर संसद ने उनके ऊपर महाभियोग की कार्रवाई शुरू कर दी. 18 अगस्त, 2008 को मुशर्रफ ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया.

अपनी आत्मकथा से बटोरी सुर्खियां

साल 2006 में परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) की आत्मकथा ‘इन द लाइन ऑफ फायर-अ मेमॉयर’ लॉन्च हुई. इस किताब में उनके विमोचन से पहले की भी चर्चा लिखी गई. इस किताब के लोकप्रिय होने का कारण मुशर्रफ के कई विवाद भी रहे हैं. जिसमें कारगिल संघर्ष और पाकिस्तान में हुए सैन्य तख्तापलट जैसी घटनाओं के बारे में विस्तार से लिखा गया है.