भारतीय क्रिकेट टीम को कई प्रतिभाशाली क्रिकेटर मिले. फिर चाहे वो सचिन तेंदुलकर हो विराट कोहली हो या फिर महेंद्र सिंह धोनी. इन जैसे कई खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा के दम पर काफी नाम कमाया. हम उन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को तो जानते हैं जिन्हें भारतीय टीम में खेलने का मौका मिला लेकिन ऐसे भी कई बेहतरीन खिलाड़ी हैं जिनका करियर सिर्फ घरेलू स्तर तक ही सीमित रहा. साथ ही कुछ ऐसे भी खिलाड़ी हैं जिन्हे भारतीय टीम में मौका तो मिला लेकिन अपनी फूटी किस्मत के चलते सही मुकाम हासिल नहीं कर सके.

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अंबाती रायडू

अबाती रायडू को देश के बदकिस्मत क्रिकेटरों में से एक माना जाता है. उन्होंने 2013 में जिम्बाब्वे के खिलाफ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शरुआत की थी. जिसके बाद से उन्हे एक अतिरिक्त खिलाड़ी के रूप में ही देखा जाता रहा. इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) 2018 के दौरान उन्होंने चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) के लिए पारी की शुरुआत की और काफी रन बनाए. शीर्ष क्रम में लगातार रन बनाने के कारण रायुडू को इंग्लैंड में एकदिवसीय श्रृंखला के लिए चुना गया. इसके बाद विराट कोहली ने यहां तक कह दिया कि टीम को मध्यक्रम में रायुडू जैसे बल्लेबाज की तलाश थी. लेकिन चीजें कुछ ही समय में बदल गईं. 2019 का वर्ल्ड कप उनके लिए आखिरी वर्ल्ड कप था. उन्हें उम्मीद थी की टीम में उनका चयन किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ चयनकर्ताओं ने उन्हें दरकिनार कर दिया. इससे अंबाती रायुडू को भारी निराशा हुई, जिसके बाद उन्होने खेल के सभी प्रारूपों से संन्यास ले लिया.

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वसीम जाफर

यकीनन वसीन जाफर एक घरेलू भारतीय दिग्गज हैं. 260 प्रथम श्रेणी मैच खेलना और लगभग 51 का औसत बनाए रखना किसी भी तरह से खराब रिकॉर्ड नहीं है. वह 10 मौकों पर रणजी ट्रॉफी जीतने वाली टीमों का हिस्सा थे. इस बेहद प्रतिभाशाली बल्लेबाज को भारत के लिए सिर्फ 31 टेस्ट खेलने का मौका मिला. जिसमें उन्होंने 58 पारियों में 34.10 की औसत से पांच शतक और 11 अर्द्धशतक के साथ 1944 रन बनाए. उसी समय भारत को गौतम गंभीर जैसा ओपनर मिला जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लंबी छलांग लगा रहा था. जिसके बाद जाफर फिर कभी राष्ट्रीय टीम में वापसी नहीं कर सके.

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रॉबिन उथप्पा

इस सलामी बल्लेबाज ने अपने शुरुआती करियर में अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया था. आगे निकलकर गेंदबाज के सिर के ऊपर से शॉट खेलना इनकी खासियत थी. लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें मौके मिलने बंद हो गए. 46 एकदिवसीय मैचों के बाद उसका औसत 25.94 का था. लेकिन हो सकता है कि उन्हें अपने करियर के पहले कुछ वर्षों में रोहित शर्मा की तरह थोड़े और समर्थन की जरूरत थी. उथप्पा ने 2015 में जिम्बाब्वे दौरे के लिए टीम में वापसी की थी और वह तब ही आखिरी बार भारत के लिए खेले थे. हालांकि इन वर्षों में उथप्पा का आईपीएल में शानदार प्रदर्शन जारी रहा. 

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मनोज तिवारी

कई लोगों का मानना है कि इस क्रिकेटर को अपनी काबिलियत साबित करने के लिए पर्याप्त मौके मिलने चाहिए थे. 2008 में और 2015 तक तिवारी ने 12 एकदिवसीय और 3 टी20 मैच खेले. अवसरों की कमी के कारण उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे नहीं बढ़ने दिया गया. बंगाल के इस बल्लेबाज ने 26.09 की औसत से एक शतक और एक अर्धशतक के साथ 287 रन बनाए. दिलचस्प बात यह है कि शतक बनाने के तुरंत बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया. वजह टीम के वरिष्ठ खिलाड़ियों का लौटना था.

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एस बद्रीनाथ

इस खिलाड़ी ने अपने करियर में 145 प्रथम श्रेणी, 144 लिस्ट-ए और 142 टी20 मैच खेले. लेकिन उन्होंने भारत के लिए केवल 2 टेस्ट, 7 वनडे और एक T20 ही खेला. यह उन खिलाड़ियों में से एक खिलाड़ी थे जिनका घरेलू क्रिकेट में औसत शानदार होने के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय स्तर नज़रअंदाज़ कर दिया गया. बद्रीनाथ ने अपना आखिरी मैच जून 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था.