व्यक्ति की उम्र उसके जन्म वर्ष के आधार पर पता लगाई जा सकती है, लेकिन किसी वस्तु, पौधों, मृत जानवरों या जीवाश्म अवशेषों के लिए उम्र को स्थापित करना काफी मुश्किल होता है. यहीं पर कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) को इस्तेमाल में लिया जाता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कार्बन डेटिंग सदियों से मौजूद वस्तुओं के इतिहास या विभिन्न प्रजातियों के विकास की प्रक्रिया को समझने में अहम भूमिका निभाती है.

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कार्बन डेटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जो वस्तु में मौजूद ‘कार्बन-14’ की मात्रा का अनुमान लगाकर कार्बन आधारित सामग्री की आयु बता सकती है. हालांकि, कार्बन डेटिंग के लिए भी शर्त है कि इसे सिर्फ उस पदार्थ पर लागू किया जा सकता है जो कभी जीवित था या वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड लेता रहा हो.

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कार्बन डेटिंग दुनियाभर में पुरातत्वविदों और जीवाश्म वैज्ञानियों के लिए लाभकारी साबित हुई है. एक और जरूरी बात बता दें कि कार्बन डेटिंग का उपयोग चट्टानों की आयु को स्थापित करने के लिए नहीं किया जाता है क्योंकि कार्बन डेटिंग सिर्फ उन चट्टानों के लिए काम करती है जो 50,000 वर्ष से कम उम्र की हो.

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जैसे-जैसे पौधे, जानवर और मनुष्यों की मृत्यु होती हैं, वे सिस्टम में कार्बन-14 के संतुलन को रोक देते हैं, क्योंकि कार्बन अब अब्सोर्ब नहीं हो पाता. इस बीच जमा हुआ कार्बन-14 खत्म लगता है. वैज्ञानिक आयु स्थापित करने के लिए फिर कार्बन डेटिंग की बची हुई मात्रा का विश्लेषण किया जाता है. कार्बन के अलावा पोटेशियम-40 एक ऐसा तत्व है जिसका विश्लेषण रेडियोएक्टिव डेटिंग के लिए किया जा सकता है.