कोरोना वायरस महामारी की वजह से हरिद्वार कुंभ में संकट गहराता जा रहा है. कुंभ के कई साधु-संतों को कोरोना हो चुका है. इस वजह से प्रमुख निरजंनी आखड़ा ने महाकुंभ की समाप्ती की घोषणा कर दी. लेकिन इस घोषणा को अन्य सभी आखांड़ों ने सही नहीं माना और इसका विरोध शुरू कर दिया है. कुछ अखाड़ों का कहना है कि बिना बैठक किए कुंभ समाप्त करने का निर्णय कोई नहीं ले सकता है. इस पर फैसला होने के बाद मुर्हूत के हिसाब से कुंभ का समापन होगा. वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी ने भी शनिवार को कहा कि, अब कुंभ को कोरोना के संकट के चलते प्रतीकात्मक ही रखा जाए. इससे इस संकट से लड़ाई को एक ताकत मिलेगी.

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इस समय 12 प्रमुख अखाड़े हैं जिनमें प्रत्येक के शीर्ष पर महन्त आसीन होते हैं. इन प्रमुख अखाड़ों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं:-

1. पंचायती निरंजनी अखाड़ा:- यह अखाड़ा 826 ईस्वी में गुजरात के मांडवी में स्थापित हुआ था. इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकस्वामी हैं. इनमें दिगम्बर, साधु, महन्त व महामंडलेश्वर होते हैं. इनकी शाखाएं इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर व उदयपुर में हैं.

2. पंच दशनाम जूना अखाड़ा:- यह अखाड़ा 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में स्थापित हुआ. इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं. इनके ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं. इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है. हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है. इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं तो मेले में आए श्रद्धालुओं समेत पूरी दुनिया की सांसें उस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए रुक जाती हैं.

3. पंचायती श्री महानिर्वाण अखाड़ा:- यह अखाड़ा 671 ईस्वीं में स्थापित हुआ था, कुछ लोगों का मत है कि इसका जन्म बिहार-झारखण्ड के बैजनाथ धाम में हुआ था, जबकि कुछ इसका जन्म स्थान हरिद्वार में नील धारा के पास मानते हैं. इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं. इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, कारेश्वर और कनखल में हैं. इतिहास के पन्ने बताते हैं कि १२६० में महंत भगवानंद गिरी के नेतृत्व में २२ हजार नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारी सेना के कब्जे से छुड़ाया था.

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4. श्री पंचायती अटल अखाड़ा:- यह अखाड़ा 569 ईस्वीं में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया. इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं. यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है. इसकी मुख्य पीठ पाटन में है लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में हैं.

5. श्री आह्वान अखाड़ा या सरकार अखाड़ा :- यह अखाड़ा 646 ईस्वीं में स्थापित हुआ और 1603 में पुनर्संयोजित किया गया. इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन हैं. इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है. इसका आश्रम ऋषिकेश में भी है. श्रीमहंत सत्यगिरी, स्वामी अनूपगिरी और उमराव गिरी इस अखाड़े के प्रमुख संतों में से हैं. इसे सरकार अखाड़ा भी कहते हैं.

6. श्री आनंद अखाड़ा:- यह अखाड़ा 855 ईस्वी में मध्यप्रदेश के बेरार में स्थापित हुआ था. इसका केंद्र वाराणसी में है. इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में भी हैं.

7. श्री पंचाग्नि अखाड़ा:- इस अखाड़े की स्थापना 1136 ईस्वी में हुई थी. इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है. इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रहमचारी, साधु व महामंडलेश्वर शामिल हैं. परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में हैं.

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8. श्री वैष्णव अखाड़ा:- यह बालानंद अखाड़ा ईस्वी 1595 में दारागंज में श्री मध्यमुरारी में स्थापित हुआ. समय के साथ इनमें निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने. इनका अखाड़ा त्र्यंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास था. 1848 तक शाही स्नान त्र्यंबकेश्वर में ही हुआ करता था, परंतु 1848 में शैव व वैष्णव साधुओं में पहले स्नान कौन करे इस मुद्दे पर झगड़े हुए. श्रीमंत पेशवाजी ने यह झगड़ा मिटाया. उस समय उन्होंने त्र्यंबकेश्वर के नजदीक चक्रतीर्था पर स्नान किया. 1932 से ये नासिक में स्नान करने लगे जो आज भी जारी है.

9. श्री उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा:- यह अखाड़ा सन 1910 में स्थापित हुआ. इस संप्रदाय के संस्थापक श्री चंद्रआचार्य उदासीन हैं. इनमें सांप्रदायिक भेद हैं. इनमें उदासीन साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या ज्यादा है. उनकी शाखाएं शाखा प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, भदैनी, कनखल,साहेबगंज, मुलतान, नेपाल व मद्रास में है.

10. श्री उदासीन नया अखाड़ा:- यह अखाड़ा सन 1710 में स्थापित हुआ. इसे बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ सांधुओं ने विभक्त होकर स्थापित किया. इनके प्रवर्तक मंहत सुधीरदासजी थे. इनकी शाखाएं प्रयागए हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर में हैं.

11. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा:- सन 1784 में हरिद्वार कुंभ मेले के समय एक बड़ी सभा में विचार विनिमय करके श्री दुर्गासिंह महाराज ने इसकी स्थापना की. इनकी ईष्ट पुस्तक श्री गुरुग्रन्थ साहिब है. इनमें सांप्रदायिक साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या बहुत है. इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं.

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12. निर्मोही अखाड़ा:- निर्मोही अखाड़े की स्थापना सन 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी. इस अखाड़े के मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं. पुराने समय में इसके अनुयायियों को तीरंदाजी और तलवारबाजी की शिक्षा भी दिलाई जाती थी.