“गणपति बप्पा मोरया” में मोरया शब्द का महत्व है !! भक्त भगवान गणेश की स्तुति गाने के लिए हर समय गणपति बप्पा मोरया का जाप करते हैं. लेकिन हम में से कितने लोग जानते हैं कि मोरया शब्द का क्या अर्थ है? मोरया शब्द चौदहवीं शताब्दी में भगवान गणेश के एक प्रसिद्ध भक्त को संदर्भित करता है, जिसे मोरया गोसावी कहा जाता है, जो मूल रूप से कर्नाटक के शालिग्राम नामक गांव से है जहां उनकी भक्ति को पागलपन के रूप में देखा जाता था ! बाद में उन्होंने यात्रा की और पुणे के पास चिंचवड़ में बस गए और घोर तपस्या के साथ भगवान का आह्वान किया. उन्होंने श्री चिंतामणि में सिद्धि (विशेष शक्तियां और आशीर्वाद) प्राप्त की और उनके बेटे ने इस घटना को मनाने के लिए मंदिर का निर्माण किया.

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ऐसा कहा जाता है कि मोरयाजी ने अहमदाबाद में सिद्धि विनायक और मोरेगांव के मोरेश्वर/मयूरेश्वर में भी तपस्या की थी, जहां उन्होंने मंदिर भी बनवाया था. मोरयाजी की भक्ति से अभिभूत, उन्हें भगवान गणेश ने उनकी किसी भी इच्छा को पूरा करने का आशीर्वाद दिया. जब भी कोई अपने भगवान को अपने ‘परम भक्त’ के रूप में याद करता है, तो मोरया ने इस धरती पर हमेशा के लिए याद करने के लिए कहा. इस प्रकार यह भगवान और उनके भक्त के बीच अविभाज्य संबंध को दर्शाता है.” जब आप ‘गणपति बप्पा मोरया’ कहते हैं तो इसे हमेशा याद रखें.

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इसलिए पड़ा मोरगांव नाम

आबादी को मोरगांव नाम इसलिए मिला क्योंकि समूचा क्षेत्र मोरों से समृद्ध था. यहां गणेश की सिद्धप्रतिमा थी जिसे मयूरेश्वर कहा जाता है. इसके अलावा सात अन्य स्थान भी थे जहां की गणेश-प्रतिमाओं की पूजा होती थी. थेऊर, सिद्धटेक, रांजणगांव, ओझर, लेण्याद्रि, महड़ और पाली अष्टविनायक यात्रा. अष्ट विनायक यात्रा की शुरुआत ही मोरगांव के मयूरेश्वर गणेश से होती है, इसलिए भी मोरया नाम का जयकारा प्रथमेश गणेश के प्रति होना ज्यादा तार्किक लगता है. मयूरासन पर विराजी गणेश की अनेक प्रतिमाएं उन्हें ही मोरेश्वर और प्रकारांतर से मोरया सिद्ध करती हैं.

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मराठियों की प्रसिद्ध गणपति वंदना सुखकर्ता-दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची.. की रचना संत कवि समर्थ रामदास ने चिंचवड़ के इसी सिद्धक्षेत्र में मोरया गोसावी के सानिध्य में की थी.

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नोटः ये लेख मान्यताओं के आधार पर बनाए गए हैं. ओपोई इस बारे में किसी भी बातों की पुष्टि नहीं करता है.