जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने गुरुवार (11 अगस्त) को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में उपराष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई. उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति भी होता है. धनखड़ को 6 अगस्त को विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा (Margaret Alva) को हराकर उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया था.

7 अगस्त को मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे ने ‘भारत के अगले उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ के चुनाव के प्रमाणपत्र’ पर हस्ताक्षर किए थे. 

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने विपक्ष की मार्गरेट अल्वा के 182 के मुकाबले 528 वोट हासिल किए थे. बता दें कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष भी होता है. 

जगदीप धनखड़ ने 74.36 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. 1997 के बाद से हुए सभी छह उपराष्ट्रपति चुनावों में धनखड़ की जीता का अंतर सबसे ज्यादा रहा है. 

उपराष्ट्रपति चुनाव के रिटर्निंग ऑफिसर ने कहा कि कुल 780 मतदाताओं में से 725 ने अपने मत डाले लेकिन 15 मत अवैध पाए गए. उन्होंने बताया कि मतदान 92.94 प्रतिशत हुआ था, उन्होंने ये भी बताया कि एक उम्मीदवार को निर्वाचित होने के लिए 356 मतों की आवश्यकता थी.

लोकसभा में 23 सहित कुल 36 सांसदों वाली तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव से परहेज किया था. हालांकि उसके दो सांसदों ने मतदान किया था. उपराष्ट्रपति चुनाव में 55 सांसदों ने मतदान नहीं किया. 

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कौन हैं जगदीप धनखड़

जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) का जन्म झुंझुनूं जिले के गांव किठाना में साल 1951 में साधारण किसान परिवार के यहां हुआ था. जगदीप धनखड़ ने राजस्थान विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उनका चयन आईआईटी, एनडीए और आईएएस के लिए भी हुआ था, लेकिन उन्होंने वकालत को चुना. जगदीप धनखड़ ने अपनी वकालत की शुरुआत राजस्थान हाई कोर्ट से की थी. इसके अलावा वह राजस्थान बार काउंसिल के चेयरमैन भी रहे. जगदीप धनखड़ ने 6 अगस्त 2022 को हुए भारत के उपराष्ट्रपति पद का चुनाव भी जीता. जगदीप धनखड़ को एनडीए ने अपना उम्मीदवार बनाया था.  

जगदीप धनखड़ ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी. धनखड़ 1988 में झुंझुनूं से सांसद बने थे. उन्हें 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया था. हालांकि जब 1991 में लोकसभा चुनाव हुए तो जनता दल ने जगदीप धनखड़ का टिकट काट दिया था. उसके बाद वह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और अजमेर के किशनगढ़ से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1993 में चुनाव लड़ा और विधायक बने.

इसके बाद साल 2003 में जगदीप धनखड़ का कांग्रेस से मोहभंग हुआ और उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. बता दें कि 70 वर्षीय जगदीप धनखड़ को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 30 जुलाई 2019 को पश्चिम बंगाल के 28वें राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया था.

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धनखड़ सिर्फ नेता ही नहीं बल्कि जाने-माने वकील भी हैं. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों में उनका नाम शुमार है. जगदीप धनखड़ राजस्थान की जाट बिरादरी से आते हैं और राजस्थान में जाटों को आरक्षण दिलवाने में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी. इस समुदाय में जगदीप धनखड़ की खासी साख हैं. भारतीय जनता पार्टी उनके जरिए जाटों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है.