1984 में जब भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा उठाने का फैसला किया, तब वह सिर्फ 4 साल की पार्टी थी. अयोध्या यानी ऐसी जगह जहां भगवान राम का जन्म हुआ था और बाबरी मस्जिद जहां करीब 400 सालों से खड़ी थी.

वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा स्थापित पार्टी 1980 में जनता पार्टी से अलग हुई. इसी के साथ तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाला गठबंधन तीन साल बाद टूट गया. इस तरह इंदिरागांधी के नेतृत्व वाली सरकार सरकार सत्ता में वापस आ गई.

इसके बाद 57 साल के लालकृष्ण आडवाणी ने 1984 में राम जन्मभूमि आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली.

1984 के चुनावों तक बीजेपी ने उतनी लोकप्रिय नहीं थी. उस समय लोकसभा में उनकी दो सीटें आई थीं, लेकिन 1989 में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण की बात लिखी. इसके बाद पार्टी आडवाणी के नेतृत्व में गति हासिल करने लगी. 1989 के आम चुनाव में भाजपा ने दो से 85 सीटों की भारी छलांग लगा दी.

25 सितंबर, 1990 को बीजेपी के फायरब्रांड आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक एक रथयात्रा शुरू की, जिसमें बाबरी मस्जिद के उस स्थान पर राम मंदिर बनाने की मांग को समर्थन देने की बात थी. भगवा नेताओं ने ये स्थान बहुत सोच-समझकर चुना था.

राममंदिर भूमि पूजन से पहले श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हुए

भगवा रंग में लिपटे और माथे पर तिलक लगाए आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अपनी यात्रा शुरू की. सबसे दिलचस्प बात ये है कि यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित की गई, जो उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता और आडवाणी के समर्थक थे. अयोध्या तक रथ यात्रा के जरिए देश में राममंदिर को लेकर खास संदेश दिया जाना था. जैसा कि पहले सोमनाथ में मंदिर बनाकर दिया जा चुका था.

सोमनाथ में एक शिव मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया. दशकों में ये कई बार उजाड़ा और बनाया गया. आखिरी बार इसे 1665 में मुगल सम्राट औरंगजेब के हाथों उजाड़ा गया. यह 1950 तक खंडहर के रूप में पड़ा रहा. इसके बाद इसे फिर सोमनाथ मंदिर के रूप में बनाया गया.

आडवाणी ने 30 अक्टूबर तक अयोध्या पहुंचने का लक्ष्य लेकर एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा की. भगवान राम के लिए ‘कर सेवा’ के लिए वे चले, लेकिन उन्हें अयोध्या जाने से रोकने के लिए बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव के आदेश पर 23 अक्टूबर को गिरफ्तार कर लिया गया.

इसी गिरफ्तारी के जवाब में भाजपा ने केंद्र में वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसमें लालू यादव की पार्टी राजद भी एक सहयोगी दल थी. वीपी सिंह की सरकार गिर गई.

1991 में अगले आम चुनाव में बीजेपी ने पहली बार 100 का आंकड़ा पार किया. 545 सदस्यीय लोकसभा में 120 सीटें जीतकर, राम मंदिर के वादे पर सवार होकर बीजेपी ने लोकप्रियता भी पाई.

अयोध्या में बाबरी विध्वंस की तस्वीर (फोटो साभार : AFP)

1992 के अंत में आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने करसेवकों को फिर से संगठित करना शुरू किया. 6 दिसंबर 1992 को हजारों करसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा की कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के इस आश्वासन के बाद सभा की अनुमति दी थी कि कानून और व्यवस्था का उल्लंघन नहीं होगा.

लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता मस्जिद पर भीड़ के हमले के साक्षी थे. बाबरी विध्वंस मामले में अभी भी जोशी और आडवाणी आरोपी हैं. हालांकि “आपराधिक साजिश” के आरोपी 92 वर्षीय आडवाणी ने अपने खिलाफ सभी आरोपों से इनकार किया है. वहीं मुरली मनोहर जोशी की बात करें तो वह अभी 86 साल के हैं.

6 दिसंबर के विध्वंस के बाद देश भर में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें लगभग 3000 लोग मारे गए, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे. इसके बावजूद राममंदिर को लेकर बीजेपी ने कोई समझौता नहीं किया. यही नहीं इसी पर देश में ठोस आधार भी प्राप्त किया.

1996 के आम चुनावों में बीजेपी ने लोकसभा में 161 सीटें जीतीं.सदन की अकेली सबसे ज्यादा सीटें पाने वाली पार्टी थी, लेकिन बहुमत से दूर थी. 13 दिन में सरकार गिर गई और पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में एक भाषण के बाद इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जनता दल के एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी. वो देश के 11वें पीएम बने. हालांकि वे गठबंधन पर पकड़ नहीं बना पाए और 1998 में देश में मध्यावधि चुनाव हुए.

1998-2004 तक भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शासन किया. वे भाजपा के नरमपंथी नेताओं में से एक माने जाते थे. 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी एनडीए के ‘इंडिया शाइनिंग’ वाले चुनावी अभियान से पार्टी को गति नहीं दे पाए. इसके बाद बीजेपी ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को सत्ता की चाभी सौंप दी.

2009 के चुनावों में भाजपा ने आडवाणी को पीएम चेहरे के रूप में पेश किया, लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए से हार गए. इसके साथ ही पार्टी में अटल-आडवाणी का स्वर्णिम युग 29 साल बाद समाप्त हो गया.

2009 के चुनावों में, भाजपा ने आडवाणी को अपने पीएम चेहरे के रूप में पेश किया, लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले यूपीए से फिर से हार गए. इसके साथ, पार्टी में स्वर्ण अटल-आडवाणी युग 29 साल बाद समाप्त हो गया.

जब राष्ट्रीय स्तर पर समीकरण बदल रहे थे, भाजपा के भीतर से एक और चेहरा कैडर के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहा था.

आडवाणी और उनके प्रति निष्ठावान नेताओं को कट्टर प्रतिरोध के बावजूद 2014 के आम चुनावों के बाद नरेंद्र दामोदरदास मोदी को पीएम पद का चेहरा बनाने मजबूर होना पड़ा. वैसे पार्टी कैडर का एक बड़ा हिस्सा मोदी के पीछे दौड़ा, जो कि 12 सालों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे.

इसके बाद नए युग के राजनेता नरेंद्र मोदी ने नए युग नियमों के साथ चुनाव प्रचार को एक अलग तरह की तेजी दी. उनके चुनाव अभियान को ‘अच्छे दिन’ बनाम भ्रष्टाचार के शासन में रूप में देखा गया. उन्होंने कांग्रेस पर घोटालों के आरोप लगाए. इसके बाद तो नतीजों ने इतिहास रच दिया.भाजपा ने अकेले 282 सीटें जीतीं. यह 30 साल बाद था कि किसी एक राजनीतिक दल को अपने दम पर शासन करने का जनादेश मिला.

मोदी के नेतृत्व में लड़े जा रहे चुनाव की थीम थी- विकास. राम मंदिर का पता तो लगा, लेकिन केवल पार्टी के घोषणा पत्र के पेज 43 पर.

2018 के अंत तक राममंदिर के मुद्दे पर बहुत कुछ नहीं हुआ. भाजपा ने घोषणापत्र में इस मुद्दे को लिया, लेकिन हमेशा इस बात को कहा कि यह अदालत के फैसले के साथ चलेंगे.

8 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि मामले में मध्यस्थता करने के लिए एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में और आध्यात्मिक नेता श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू के साथ एक पैनल का गठन किया, लेकिन पैनल इस मामले पर सर्वसम्मति प्राप्त करने में विफल रहा. इसके बाद शीर्ष अदालत ने अगस्त 2019 में मामले की रोज सुनवाई का आदेश दिया.

पिछले साल नवंबर में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दशकों पुराने इस मामले में फैसला सुनाया. इस फैसले में अदालत ने अयोध्या की कुल 2.77 एकड़ विवादित जमीन को रामलला के लिए दिया और साथ ही केंद्र और यूपी सरकार को निर्देश दिया कि मस्जिद बनाने के लिए मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन एक प्रमुख स्थान पर आवंटित की जाए.

5 अगस्त 2020 पीएम नरेंद्र मोदी ( जिन्होंने कभी लालकृष्ण आडवाणी के लिए ‘सारथी’ यानी रथ चालक के रूप में काम किया था) ने मंदिर की आधारशिला एक मुख्य सवार के रूप में रखी.