पीलिया के खतरनाक बीमारियों में से आती है. इसका अगर सही समय पर सटीक इलाज न कराया जाए, यह जानलेवा साबित हो सकती है. आपको बता दें कि अगर पीलिया के शुरुआती लक्षणों को अगर इग्‍नोर कर दिया जाए तो यह लिवर को तेजी से खराब करने लगता है. इससे स्किन सूखी और काली होने लगती है और इसे ही ब्लैक जॉन्डिस यानी काला पीलिया (Black Jaundice) के नाम से जाना जाता है. गौरतलब है कि ये स्थिति हेपेटाइटिस बी और सी वायरस के संक्रमण की वजह से होती है. तो चलिए जानते हैं काला पीलिया के बारे में विस्तार से

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काला पीलिया में क्या होता है?

काला पीलिया (Black Jaundice) का शिकार होने के दौरान लिवर या बाइल डक्ट (पित्त की नलिकाओं) में समस्याएं आने लगती है और लिवर में वसा की परत चढ़ने लगती है. जिसके चलते लिवर सही तरीके से काम नहीं कर पाता है. जब लिवर सही तरीके से काम नहीं कर पाता तो इससे खून में बिलीरुबिन नामक पदार्थ बनने लगता है. बिलीरुबिन के बढ़ने से ही आंख से लेकर स्किन तक का रंग पीला पड़ने लगता है. जब पीलिया बिगड़ कर हेपेटाइटिस बी या सी में बदलने लगता है, तो उस स्थिति को ही काला पीलिया के नाम से जानते हैं.

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काला पीलिया के लक्षण

काला पीलिया की चपेट में आने के दौरान पीड़ित को सिर दर्द का बढ़ना, लो-ग्रेड बुखार, मितली और उल्टी, भूख एकदम न लगना, स्किन का बेहद ड्राई और खुजली का बढ़ना, बेहद थकान-कमजोरी का बढ़ जाना होता है. पीलिया में स्किन और आंख और नाखून पीले होते हैं और काला पीलिया में इनका पीलापन और बढ़ जाता है. स्‍टूल और यूरिन का रंग बेहद गहरा पीला होता है. बुखार बढ़ता जाता है और वेट कम होने लगता है.

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काला पीलिया का इलाज

अगर समय रहते काला पीलिया के बारे में जानकारी हो जाए, तो इसका बेहतर इलाज संभव है. आपको बता दें कि कुछ मामलों में चोट या नुकसान की गंभीरता के आधार पर लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है. काला पीलिया यानी हेपेटाइटिस का टीकाकरण बीमारी से बचा सकता है.

(Disclaimer:: ये जानकारी एक सामान्य सुझाव है. इसे किसी तरह के मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें. आप इसके लिए संबंधित डॉक्टर से सलाह लें)