‘मैं एक टेढ़ी गर्दन के साथ पैदा हुई थी, लेकिन सिर्फ ये बात मुझे अलग दिखाने के लिए नाकाफी थी. अपने स्कूल में मैं हमेशा एक नई अनजान बच्ची होती थी क्योंकि मेरे पिताजी एक राजनयिक थे. नाइजीरिया जानें से पहले मै पाकिस्तान, न्यूयॉर्क और दिल्ली में रही. यहां पर (नाईजीरिया में) मेरे भारतीय लहजे को जज करते हुए मुझे अपू नाम दिया गया जो ‘द सिम्पसंस का एक कैरेक्टर है’. मेरे स्कूल में हमेशा मुझे अपनी मां के साथ तुलना का सामना करना पड़ा. मेरी मां उसी स्कूल में काम करती थीं और वे एक तेजस्वी महिला हैं. लोग मुझे उनके मुकाबले असुंदर बताते थे. उस समय मेरा आत्मविश्वास काफी कमजोर पड़ जाता था.’

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ये एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसने बचपन से अपमान और पीड़ा झेली है. जिसने अपनी जिंदगी में खूब संघर्ष किया है, जो एक समय जीवन खत्म करने वाली थी लेकिन आज सफलता के उस मुकाम पर पहुंच गई है जहां से उनके हिस्से सिर्फ खुशियां आती हैं. कहानी है एडलवाइज ग्लोबल एसेट मैनेजमेंट लिमिटेड (Edelweiss Asset Management Limited) की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) राधिका गुप्ता की. Official humans of Bombay नाम के इंस्टाग्राम हैंडल ने राधिका गुप्ता (Radhika Gupta) के जीवन संघर्ष को शब्दों में पिरोकर दुनिया के सामने रखा है.

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22 साल की उम्र में कॉलेज के बाद राधिका को कहीं नौकरी नहीं मिली. 7वें जॉब इंटरव्‍यू में फेल होने के बाद वे आत्‍महत्‍या करने वाली थीं. लेकिन समय रहते उनके दोस्‍तों ने उन्हें बचा लिया. वे राधिका को मनोचिकित्‍सक के पास ले गए.

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राधिका कहती हैं, “मुझे डिप्रेशन था और वहां से बाहर केवल इसलिए निकलने दिया गया क्योंकि मुझे एक जॉब इंटरव्यू के लिए जाना था. उस दिन मैंने वो जॉब पाने में सफलता हासिल की. अब मेरा जीवन सही ट्रेक पर था. लेकिन तीन साल बाद 2008 में मैं फिर आर्थिक संकट से जूझ रही थी.मुझे बदलाव चाहिए था और मैंने भारत आने की ठानी. 25 साल की उम्र में मैंने अपने पति और एक दोस्त के साथ मिलकर संपत्ति प्रबंधन फर्म की शुरूआत की. कुछ साल बाद उनकी कंपनी को एडलवाइस एमएफ द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया. इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और कॉर्पोरेट सीढ़ी चढ़ने लगी. मेरे पति ने मुझे कंपनी के सीईओ के रूप में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. उस समय मेरे पास अनुभव की कमी थी लेकिन अपने कार्यकौशल के बल पर 33 की उम्र में मैं भारत के सबसे युवा सीईओ में से एक थी.” 

राधिका को कई एवेंट्स में वक्ता के तौर पर बुलाया जाने लगा. उनकी कहानी, उनके संघर्ष और जज़्बे की मिसाल दी जाने लगी है. जो राधिका गुप्ता कभी अपना जीवन खत्म करना चाहती थी, आज लोगो के लिए प्रेरणा बन कर आगे बढ़ रहीं है.

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