Who was Swami Haridas: वैष्णव भक्ति संप्रदायों में सर्वश्रेष्ठ के विरक्त संगीतशास्त्र के आचार्य स्वामी हरिदास जी की प्रसिद्धी बहुत है. ऐसा माना जाता है कि वह निम्बार्क संप्रदाय की एक शाखा है और इस संप्रदाय के लोग प्रेम के सिद्धांत बहुत मानते हैं. ईश्वर का प्रेम-दर्शन की इस संप्रदाय के लिए मुख्य है. सखी संप्रदाय प्रेम को ही जीवन की सत्यता समझी जाती है.

प्रेम के इस खेल में राधा और श्रीहरि दोनों का स्वरूप बना हुआ है और इसके तीसरे रूप को सखीजन कहते हैं. इस लीला को विस्तार में हरिदास जी ने अपनी कविताओं में अच्छे से वर्णन किया था. चलिए आपको उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें बताते हैं.

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कौन थे स्वामी हरिदास?

इतिहासकारों के अनुसार, स्वामी हरिदास का जन्म 3 सितंबर, 1478 को हुआ था. उनका जन्म वृंदावन के राजपुर नाम के गांव में हुआ था. वे सनाढ्य जाति से थे और उनके पिता गंगाधर तो माता चित्रादेवी माने जाते हैं. मान्यता है कि अचानक दीपक से पत्नी के जलकर मर जाने के व्योग में वे वृंदावन जाकर रहने लगे.

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ऐसा भी माना जाता है कि स्वामी हरिदास की उपासना से प्रसन्न होकर बांकेबिहारी की मूर्ति का प्राकट्य हो गई थी जो आज भी वृंदावन में विराजमान है और पूजी जाती है. हरिदास महान संगीतज्ञ भी थे और तानसेन उनके ही परम शिष्य बताए जाते हैं. इतिहास में दर्ज है कि हरिदास जी की मृत्यु 95 वर्ष की आयु में 1573 के आसपास हुई थी. 

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स्वामी हरिदास ने किसी दार्शनिक मतवाद का प्रतिपादन हीं किाय और वे रस मार्ग के पथिक थे. उन्होंने हरि को स्वतंत्र और जीव को भगवान के अधीन मानकर अपनी रचनाएं की. संसार सागर को पार करने के लिए हरिनाम की नौका एकमात्र आधार है, इसपर उन्होंने विस्तार से कविताएं लिखी हैं. स्वामी हरिदास ने अपनी रचनाओं में राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जो आपके हृदय को विभोर कर सकता है.

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इतिहासाकरों के मुताबिक, स्वामी हरिदास जब अपने आश्रम में संगीत का अभ्यास कर रहे थे तभी सम्राट अकबर ने उन्हें सुना था. इसके बाद तानसेन हरिदास जी के शिष्य थे तो अकबर ने उन्हें सुनने की इच्छा जताई लेकिन हरिदास ने मना कर दिया. बताया जाता है कि अकबर ने हरिदास को अपने दरबार में आकर गाने के लिए कहा था लेकिन हरिदास जी अपने आश्रम से बाहर नहीं जाते थे इसलिए उन्होंने मना किया था. इतिहास में स्वामी हरिदास जी के कई पहलू आपको पढ़ने को मिल जाएंगे.

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.