हिन्दू धर्म में व्रत – त्योहारों का विशेष महत्त्व बताया गया हैं. वैसे तो हमारे यहां साल भर ही व्रत रखे जाते हैं लेकिन सावन और भाद्रपद के महीने काफी पवित्र माने जाते हैं. सावन माह के बाद आने वाला भादों का महीना भी अपने साथ बहुत सारे व्रत और त्योहारों को साथ लेकर आता है. इस महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी का व्रत (Hal Shashti Vrat) रखा जाता है. इस व्रत को अलग अलग जगहों पर चंद्रषष्ठी, रंधन छठ, हलछट, बलदेव छठ और ललई छठ जैसे नामों से पुकारा जाता है. इस साल यह हलषष्ठी का व्रत 17 अगस्त दिन बुधवार को रखा जा रहा है. 

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क्यों रखा जाता है हलषष्ठी व्रत?

जन्माष्टमी के पहले आने वाला यह हलषष्ठी व्रत भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव (Balram jayanti) के उपलक्ष्य में रखा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, श्री कृष्ण के जन्म से दो तिथि पूर्व भाद्रपद के कृष्णपक्ष की षष्ठी को उनके भाई बलराम जी का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन भी व्रत और पूजा करने की परंपरा है. हलषष्ठी का व्रत वहीं महिलाएं करती हैं जिनके एक या उससे अधिक पुत्र होते हैं. महिलाएं अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना लिए यह व्रत करती हैं. श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी  का अस्त्र हल था जिस कारण इस दिन हल पूजन का विशेष महत्त्व है. 

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हलषष्ठी व्रत की पूजन विधि

हलषष्ठी के दिन महिलाएं सुबह-सुबह नहा धोकर पूजा पाठ करने के बाद व्रत का संकल्प लेती है. इसके बाद वे अपने आंगन में मिट्टी की बेदी बनाती हैं और उसमें आटे की चौक बनाती है. इसके बाद फिर झारबेरी, पलाश की टहनी और कांस की डाल को बांधकर चना, गेहूं, जौ, धान, अरहर, मूंग, मक्का और महुआ के साथ षष्ठी देवी की पूजा अर्चना करती हैं.

नोटः ये लेख मान्यताओं के आधार पर बनाए गए हैं. ओपोई इस बारे में किसी भी बातों की पुष्टि नहीं करता है.