मेवाड़ में सैंकड़ो वर्षों से सावन के महीने में लगने वाला यह मेला उदयपुर (Hariyali Amavasya Fair) के महाराणा फतेह सिंह की महारानी बख्तावर कंवर की देन है. इस मेले की खास बात बता दें कि कि दो दिवसीय मेले का दूसरा दिन केवल महिलाओं यानी सहेलियों के लिए रिजर्व है. यह परम्परा सवा सौ वर्षों से चली आ रही और आज भी जारी है. यह मेला इस बार 28 और 29 जुलाई को आयोजित होगा.

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इस मेले में अगर कोई मनचला युवक प्रवेश कर भी जाता है. तो उसकी शामत आ जाती है. पुलिस और प्रशासन द्वारा मेले में सुरक्षा के इंतजाम किए जाते हैं. इसलिए सखियों के इस मेले में महिलाएं बगैर किसी रोक टोक के खुलकर लुत्फ उठाती हैं.

बता दें कि राजस्थान में हरियाली अमावस्या (Hariyali Amavasy 2022) पर कई जगह मेले आयोजित होते हैं. उदयपुर मेले की शुरूआत तात्कालिक महाराणा फतह सिंह के कार्यकाल के दौरान सन 1898 में हुई थी. दुनिया में पहली बार महाराणा फतह सिंह ने मेले का अकेले महिलाओं को आनंद उठाने का अधिकार दिया था. इसके लिए राजा ने फतहसागर झील जिसे पहले देवाली तालाब कहा जाता था, उस पर पाल बनवाई और वहां महिलाओं का मेला आयोजित किया. तब से लेकर आज तक यह परंपरा जारी है.

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महाराणा फतह सिंह के नाम पर ही देवाली तालाब का नाम फतहसागर पड़ा, जो प्रसिद्ध झीलों में शुमार है. महाराणा फतह सिंह चावड़ी रानी के साथ पहली बार भरे फतह सागर को देखने पहुंचे.

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उस समय महारानी ने महाराणा फतह सिंह से महिलाओं के लिए मेला आयोजित किए जाने की मांग की थी, जिसे उन्होंने मान लिया. राजा ने महारानी की अपील के बाद पूरे नगर में मुनादी करा दी और दो दिवसीय मेले की शुरूआत की. मेले का दूसरे दिन सिर्फ महिलाओं के लिए जाने किए का ऐलान कर दिया.

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महाराणा संग्राम सिंह ने सहेलियों के लिए बनवाई थी बाड़ी

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मेवाड़ में महिलाओं को विशेष दर्जा मिलता रहा है. 18वीं में शाही महिलाओं के लिए सहेलियों की बाड़ी का तत्कालीन महाराणा संग्राम सिंह ने निर्माण कराया था. इस बाड़ी में उनकी रानी के विवाह के समय आई 48 सखियों के साथ प्रत्येक दिन प्राकृतिक माहौल में घूमने आती थीं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है)