उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों (UP Assembly Elections) के बाद अब विधान परिषद (UP Vidhan Parishad) में बहुमत पाने की लड़ाई तेज हो चुकी है. चुनावी नतीजे आने के बाद अब उच्च सदन यानी विधान परिषद चुनाव के लिए सियासी दलों ने लामबंदी शुरू कर दी है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 36 सीटों पर होने वाले विधान परिषद चुनावों के लिए 15 मार्च से नामांकन शुरू हो जाएगा. पहले चरण के लिए नामांकन की तारीख 19 मार्च रखी गई है. 21 मार्च को नामांकन पत्रों की जांच होगी और फिर 23 मार्च तक नाम वापस लिए जा सकेंगे, जिसने नामांकन कर लिया है. अपने इस लेख में हम आपको बताएंगे कि विधान परिषद सदस्य यानी एमएलसी का चुनाव कैसे होता है और इस चुनाव की निर्वाचन प्रक्रिया क्या है.

यह भी पढ़ें: Punjab Cabinet: नए ‘टेस्ट’ की शुरुआत, देखें ‘कैप्टन’ भगवंत मान की ‘प्लेइंग XI’

बता दें कि अभी देश के 6 राज्यों में ही विधान परिषद (Vidhan Parishad) हैं. उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 100 सीटें हैं. इसके अतिरिक्त बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी विधान परिषद अस्तित्व में हैं. विधान परिषद में एक निश्चित संख्या तक सदस्य होते हैं. विधानसभा के एक तिहाई से ज्यादा सदस्य विधान परिषद में नहीं होने चाहिए. मसलन यूपी में 403 विधानसभा सदस्य हैं, यानी यूपी विधान परिषद में 134 से ज्यादा सदस्य नहीं हो सकते. इसके अलावा विधान परिषद में कम से कम 40 सदस्य होने आवश्यक है. बता दें कि एमएलसी का दर्जा विधायक के ही समकक्ष होता है.

जानिए कैसे चुने जाते हैं विधान परिषद के सदस्य

विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल 6 साल के लिए होता है. अगर कोई व्यक्ति विधान परिषद का चुनाव लड़ना चाहता है तो उसकी न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए. एक तिहाई सदस्यों को विधायक द्वारा चुना जाता है. इसके अतिरिक्त एक तिहाई सदस्यों को नगर निगम, नगर पालिका, जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के सदस्य चुनते हैं. वहीं, 1/12 सदस्यों को शिक्षक और 1/12 सदस्यों को रजिस्टर्ड ग्रैजुएट चुनते हैं. उत्तर प्रदेश में विधान परिषद के 100 में से 38 सदस्यों को विधायकों द्वारा चुना जाता है. वहीं, 36 सदस्यों को स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र के तहत जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य (BDC) और नगर निगम या नगरपालिका के निर्वाचित प्रतिनिधि चुनते हैं. 10 मनोनीत सदस्यों को राज्यपाल नॉमिनेट करते हैं. इसके अलावा 8-8 सीटें शिक्षक निर्वाचन और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती हैं.

यह भी पढ़ें: खाते में सरकार भेजने वाली है पैसे, जानें कौन-कौन है पात्र और क्या करना होगा

जिसकी सत्ता, उच्च सदन में दिखता है उसी का दम

उच्च सदन में किसका दम रहेगा, ये निचले सदन यानी विधानसभा में पार्टियों के दम खम पर भी निर्भर करता है. आमतौर पर ये चुनाव सत्ता का ही माना जाता है. अभी तक के रिकॉर्ड तो यही कहते हैं. मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में साल 2004 में हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी 36 में 24 सीटों पर काबिज हुई थी. बसपा की बात करें तो उन्हें एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी. साल 2010 में जब इन सीटों पर चुनाव हुए तो बसपा सत्ता में थी. उसने 36 में 34 सीटें जीतकर लगभग क्लीन स्वीप कर लिया था. इसके बाद फरवरी-मार्च 2016 में अखिलेश यादव के सीएम रहते चुनाव हुए तो सपा ने 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसमें 8 सीटों पर निर्विरोध जीत भी शामिल थी जबकि पहले सपा केवल एक सीट जीती थी.

36 एमएलसी चुने जाएंगे

आपकी जानकारी के लिए बता दें प्रदेश में स्थानीय निकाय कोटे की विधान परिषद की 35 सीटें हैं. इसमें मथुरा-एटा-मैनपुरी सीट से 2 प्रतिनिधि चुने जाते हैं इसलिए 35 सीटों पर 36 सदस्य चुने जाते है. अमूमन ये चुनाव विधानसभा के पहले या बाद में होते रहे हैं. इस बार 7 मार्च को कार्यकाल खत्म होने के चलते चुनाव आयोग ने विधानसभा के बीच में ही इसकी घोषणा कर दी थी. फिर बाद में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर परिषद के चुनावों को टाल दिया गया. स्थानीय निकाय की सीटों पर सांसद, विधायक, नगरीय निकायों, कैंट बोर्ड के निर्वाचित सदस्य, जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायतों के सदस्य, ग्राम प्रधान वोटर होते हैं.

यह भी पढ़ें: योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह की गेस्ट लिस्ट सामने आई, यहां देखें