नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी (National Logistics Policy) में लॉजिस्टिक्स से जुड़े सभी मामलों के लिए सिंगल रेफरेंस पॉइंट बनाया जाएगा. इस योजना को शुरू करने के पीछे का मकसद ये है कि अगले 10 सालों में लॉजिस्टिक्स सेक्टर की लागत को 10 प्रतिशत तक लाया जाए जोकि अभी जीडीपी का 13 से 14 प्रतिशत है. वर्तमान समय की बात करें तो इस समय लॉजिस्टिक्स का ज्यादातर काम सड़कों के जरिए होता है. नई नीति की मानें तो अब रेल ट्रांसपोर्ट के साथ-साथ शिपिंग और एयरपोर्ट ट्रांसपोर्ट पर भी जोर दिया जाएगा.

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एक अधिकारी ने बताया कि नई नीति के सहारे ही लगभग 50 प्रतिशत कार्गो को रेल के जरिए भेजा जाएगा. इससे सड़कों पर ट्रैफिक कम होगा, तेल के आयात में कमी आएगी और लॉजिस्टिक्स के खर्च में भी कमी आएगी. साथ ही लगने वाला समय भी कम होगा. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि विश्व बैंक लॉजिस्टिक्स इंडेक्स 2018 के मुताबिक, भारत लॉजिस्टिक्स के खर्च के मामले में 44वें स्थान पर है. भारत इस मामले में अमेरिका और चीन जैसे देशों से बहुत पीछे हैं जो क्रमश: 14वें और 26वें स्थान पर हैं. लॉजिस्टिक्स के खर्च के मामले में जर्मनी पहले नंबर पर है. यानी उसका खर्च सबसे कम है.

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जी न्यूज की रिपोर्ट की मानें तो भारत में लॉजिस्टिक्स का मार्केट 215 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का है. ये मार्केट सालाना 10.5 प्रतिशत के कंपाउंड रेट से बढ़ रही है. इसके बावजूद इसका सिर्फ 10 से 15 फीसदी हिस्सा असंगठित मार्केट के अंदर आता है. कारोबारियों का कहना है कि इस नई नीति के आने से कई तरह की समस्याएं समाप्त हो सकती हैं और लॉजिस्टिक्स के मामले में भारत अपनी नई पहचान बना सकता है.