भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा ऑनलाइन माध्यम से अरुणाचल प्रदेश के बहुचर्चित और सुरक्षा के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाने वाले एक प्रोजेक्ट के आखिरी चरण को हरी झंडी दिखाई गई. आपको बता दें कि अरुणाचल प्रदेश में 13,700 फीट की ऊंचाई पर सेला सुरंग बनाने का कार्य चल रहा है. कल सुरंग में एक विस्फोट कर अंतिम चरण के काम को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा. यह सुरंग देश की सुरक्षा में एक अहम रोल अदा करेगी.

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सेला टनल का अंतिम चरण

भारत के दिवंगत केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में इस महत्वपूर्ण योजना की घोषणा की थी. उस समय उन्होंने सभी को बताया था कि यह सुरंग 13,700 फीट की ऊंचाई पर बनाई जाएगी. सेला सुरंग बनाने का काम बहुत ही तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है. इस समय यह सुरंग अपने अंतिम चरण में पहुंच चुकी है. कल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऑनलाइन माध्यम से सुरंग के अंतिम चरण के काम को हरी झंडी दिखा दी. सेला सुरंग में विस्फोट कर अंतिम चरण के काम को शुरू कर दिया गया है. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि सेला सुरंग का निर्माण कार्य साल 2022 तक संपन्न हो जाएगा.

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सेला सुरंग की खासियत

आपकी जानकारी के लिए बता दें महत्वपूर्ण सेला सुरंग के निर्माण के बाद अरुणाचल के तवांग के जरिए चीन सीमा तक की दूरी 10 किलोमीटर तक घट जाएगी. इसके अलावा असम के तेजपुर और अरुणाचल के तवांग में सेना के चार मुख्यालय स्थित है, उनके बीच की करीब 1 घंटे तक की दूरी कम हो जाएगी. ऐसी भी खबरें सामने आ रही हैं किसे ला सूरन की मदद से बोमडिला और तवांग के बीच 171 किलोमीटर की दूरी काफी सुलग बन जाएगी और हर तरह के मौसम में कम समय में वहां जाया जा सकेगा.

सेना के लिए कितनी फायदेमंद सेला टनल?

इस समय भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है. चीन लगातार भारत को आंखें दिखा रहा है, गीदड़ धमकियां दे रहा है. ऐसे में सेला सुरंग का जल्द से जल्द पूरा होना अति आवश्यक है. इस चैनल के बनने के बाद तवांग में सेना की आवाजाही काफी आसान हो जाएगी. इस परियोजना में राष्ट्रीय राजमार्ग तक एकल मार्ग को दोहरे मार्ग में परिवर्तित करना शामिल है. आपको बता दें कि इसमें सेला-छबरेला रिज के जरिए 475 मीटर और 1790 मीटर लंबी सुरंगों को नूरांग की और मौजूदा बालीपरा-चौदूर-तवांग रोड से जोड़ने की योजना है. सेला सुरंग का निर्माण पूरा होने के बाद चाहे कैसा भी मौसम हो, बर्फबारी हो, बारिश हो, तूफान हो सेना को किसी भी तरह की समस्या नहीं आएगी, उनकी आवाजाही प्रभावित नहीं होगी और कम समय में एक जगह से दूसरी जगह पर आराम से पहुंच सकेंगे.

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