सृष्टि के आरंभ से लेकर अंत तक आद्य शक्ति पराम्बा, जगदम्बा, जगतजननी, आद्या महेश्वरी का महाविस्तार दैवीय ग्रन्थों में अलग-अलग प्रकार से उल्लेखित है. जिनमें श्रीमद्दैवीय भागवत, वाराह पुराण, दैवी पुराण आदि शक्ति ग्रन्थों में ममतामयी जगत् माता पराशक्ति का विशद विवेचन किया गया है. यूं तो नवदुर्गा के नौ करोड़ रूपों की अलग-अलग व्याख्या उनके संबंधित रूपों से उनके अवतारों की कथा जुड़ी हुई है. क्योंकि 18 महापुराणों में शास्त्रीय अभिमतों में आद्यशक्ति की उपासना का अलग-अलग संकल्पानुसार कथन कहा गया है.

ज्योतिषाचार्य पं अमर अभिमन्यू डब्बावाला के अनुसार पंचांगीय गणना से देखें तो इस बार अश्विन शुक्ल प्रतिपदा,17 अक्टूबर 2020 को शारदीय नवरात्र का महापर्व आरंभ होगा. इस बार नवरात्रि महापर्व पूरे 9 दिन के हैं. 17 अक्टूबर को घटस्थापना और 25 अक्टूबर को महा नवमी की पूजन के साथ ही तिथि गणना से सायंकाल विजयदशमी अर्थात दशहरा महापर्व मनाया जाएगा

इस बार अधिक मास के चलते यह संयोग 38 वर्षों बाद बना है क्योंकि हर 3 साल में आने वाले अधिक मास की गणना अलग-अलग प्रकार से की जाती है उनमें भी अश्विन मास का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि यह माह महाकाली के प्राकट्य से जुड़ा हुआ है इस दृष्टि से यह विशेष बताया गया है. 17 अक्टूबर को शनिवार के दिन चित्रा नक्षत्र उपरांत स्वाति नक्षत्र पर विष्कुंभ योग करण तुला राशि का चंद्रमा के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग रहेगा.

इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग का आरंभ शनिवार के दिन 11 चोपन से होगा जो अगले दिन सुबह 6.28 तक मान्य रहेगा इस दृष्टि से 19 घंटे का यह सर्वार्थ सिद्धि योग साधक की उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ महायोग माना गया हैं. इसमें की गई नवरात्रि पर यंत्र मंत्र तंत्र साधना इच्छित फल प्रदान करती है. इस बार नवरात्र पूरे 9 दिनों के हैं. साथ ही नवरात्र का आरंभ अमृतसिद्धि व सर्वार्थसिद्धि योग में होगा.

कर्म से भाग्य रूप में हूं मैं – आद्य शक्ति

आर्ष ग्रन्थों में तथा वेद वेदांगों के अन्तर्गत दिव्य तथा तेजोमय जीव मात्र की सत्ता का उल्लेख है साथ ही इस जीव की उत्तरोत्तर उन्नति एवं गति के लिए शास्त्रधर्म ने अलग.अलग सौपानों का गठन किया है. वहीं युग.युगान्तर एक सत्यता सामने आती है. वह यह है कि बिना कर्म के भाग्य की गति नही बढ़ पाती. साथ ही यह भी सत्य है कि पूर्व जन्म का प्रारब्ध वर्तमान का भाग्य है. तथा कृत्य.अकृत्य का परिणाम वर्तमान जीवन की व्यवहारिकता दिखलाता है. यह सत्य है कि पूर्व में जो भी कर्म से संबंधित प्रक्रिया स्वयं के द्वारा होती है उसी की उपादेयता जन्म.जन्मान्तर का कथानक बन जाता है. इसी सन्दर्भ में द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने कहा है कि कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषुकदाचन्. अर्थात कर्म करते जाऐं फल की चिन्ता न करें. यथार्थ में कर्म ही भाग्य का परिणाम है व फलदाता है. दैवीयभागवत् में भी कर्म तथा कर्म के द्वारा तपबल के माध्यम से प्रारब्ध के परिवर्तन की बात कही गई है.

प्रगति तथा परिणाम की साक्षी हूं मैं – कमला

सर्वम् शक्ति मयं जगत्. अर्थात सम्पूर्ण जगत् में एक मात्र मैं ही शक्ति हूं. कार्य सिद्धांत के रूप में जगत् जननी ने समय की बढ़ती गति के साथ कार्य की गति को बढ़ते क्रम से प्रगति के रूप में परिभाषित किया है. यह भी सत्य है कि निरंतर कार्य करने से जगदम्बा का आशिर्वाद सफलता तथा प्रगति के रूप में प्राप्त होता है. जिस प्रकार एक पौधा निरन्तर संरक्षण में पल्लवित होकर के फूल तथा फल देता है. और अन्ततः प्रगति के एक बीज को छोड़ देता है उसी प्रकार आदि शक्ति की उपासना से प्रगति तथा सफलता के परिणाम कार्य सादृश्य प्राप्त होते हैं.

आश्रमों में तपोबल हूं मैं – पराश्क्ति

पराशक्ति अपने नियत सिद्धांतों में बहूत ही पारदर्शिता रखती है जब सृष्टि के आरंभ का कल्प जागृत हुआ तब चार प्रकार के आश्रमों का दृष्टिकोण सामने आया जिनमें ब्रम्हचर्यए ग्रहस्थए वानप्रस्थ एवं सन्यास. ये क्रमशः जीव की उत्तरोत्तर गति एवं आत्मा का परमात्मा के साथ संयोजन की अवस्था है. नौ दिनों के नवरात्रि में शक्ति के नौ अलग.अलग स्वरूपों का उपासना का क्रम प्रायः सभी आश्रमों के पालनकर्ताओं के द्वारा संपादित होता है. जिसमें ब्रम्हयर्च अपने जीवनकाल में सरस्वती स्वरूप आराधना करके विद्यावान व गुणी बनते है. ग्रहस्थ भगवती पराम्बा की साधना से परिवार के संचालन में दक्ष होते हैं. तथा पुत्र.पौत्रादि व धन की प्राप्ति का आशिर्वाद प्राप्त करते है. वहीं वानप्रस्थियों के लिए महेश्वरी की शक्ति साधना वैदिक तंत्र के द्वारा संसार के संतुलन का नियमन करती है. तथा सन्यासियों के लिए आरण्य में दिव्य शक्ति का अनुभव व दर्शन का विशेष अवसर प्रदान करती है. कुल मिलाकरके आद्य शक्ति की विविध रूपों में की गई आराधना,साधक, उपासक, ग्रहस्थ, विद्यार्थी को इच्छित परिणाम प्रदान करती है.

साहस व इच्छाषक्ति का स्वरूप हूं मैं – जगदम्बा

श्रीमद्दैवीय भागवत् पुराण के अनुसार आगम तथा निगम की यह सृष्टि अपने विशिष्ट एवं रूचिकर भागों से सम्बद्ध है. इसका स्वरूप विशेषताओं से परिपूर्ण है. यह कहा जाए कि सम्पूर्ण सृष्टि का प्रभार आयामए नियमए धर्मए सिद्धांत व परिशिष्टता ये सभी शक्ति से उत्पन्न माया का भाग है. जिसमें शक्ति के द्वारा यह कहा गया है कि सृष्टि में जो हो रहा है वह मेरी माया का अंशभूत मात्र है. जीव यदि इस अवस्था को समझ ले तो उसका सकल कल्याण सर्वत्र होता है. संसार में कार्यहीनता या धनहीनता मानवीय मन को प्रभावित करते हैं वही भगवती स्वयं की साधना का सौपान बताते हुए साधक की दृढ़ इच्छा शक्ति को जागृत करते हुए उसके साहस को बढ़ाती है तथा सभी अभीष्ठ वस्तुओं की उपलब्धि सहज करवा देती है. संक्षेप में नौ दिनों के इस महापर्व पर नवदुर्गा स्वरूप नौ शक्तियों की विधिवत उपासना करने से मानव जीवन को धर्म अर्थए काम और मोक्ष से संबंधित पुरूषार्थ की प्राप्ति होती है.

सर्वार्थ सिद्धि योग कब कब

17 अक्टूबर 11.54 से अगले सुबह 6.28 तक

19 अक्टूबर सर्वार्थ सिद्धि योग प्रातः 6.29 से अपर रात्रि 3.52 तक 23 अक्टूबर रात्रि पर्यंत 24 अक्टूबर मध्य रात्रि के साथ अपर रात्रि के संदर्भ

रवि योग कब-कब

18 अक्टूबर पर रात्रि से 19 अक्टूबर अल सुबह ब्रह्म मुहूर्त तक 20 अक्टूबर निशांत बेला से अपर रात्रि 2.00 बजे 21 अक्टूबर मध्य रात्रि तक 24 अक्टूबर से मध्य रात्रि से ब्रह्म मुहूर्त