Manipur: मणिपुर की सड़कों पर मानवता शर्मसार की गई. यहां सड़क पर दो नग्न महिलाएं अपनी सुरक्षा की भीख मांगती रही. लेकिन एक समुह के लोग भेड़ियों की तरह दंरिदगी की सारी सीमाएं लांघ रहे थे. इतना ही नहीं इस दरंदिगी का वीडियो भी वायरल किया गया जिससे पूरी मानव जाति शर्मसार होते दिखी. वहीं, सिस्टम इस पर फेल होते दिखा क्योंकि ये घटना दो माह पहले की यानी 4 मई की बताई जा रही है. सड़कों पर दिनदहाड़े मानवता को शर्मसार किया जा रहा था और प्रशासन सोई थी. लेकिन जब वीडियो वायरल हुआ और लोगों का गुस्सा फूटा तो अब 49 दिन बाद मामले में FIR दर्ज किया गया. Manipur सरकार और पुलिस लापरवाही जग जाहिर हो गई.

बीजेपी सरकार जो हमेशा गुड गर्वनेंस की बात करते थकती नहीं. उनके सामने ऐसी घटना केवल राज्य ही नहीं पूरे देश को शर्मसार करती है. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः हस्तक्षेप किया है और राज्य की सरकार और केंद्र की सरकार से इस पर रिपोर्ट पेश करने को कहा है.

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Manipur में असल विवाद और वजह क्या है

मणिपुर में विवाद की वजह समझने से पहले विवाद को समझना होगा. इसके लिए पहले मणिपुर की सामाजिक स्थिति के बारे में बात करते हैं. मणिपुर में करीब 30 से 35 लाक की जनसंख्या है और इसमें तीन समुदाय प्रमुख रूप से हैं. जिसमें मैतई, कुकी और नागा समुदाय हैं. मैतई की जनसंख्या यहां सबसे अधिक है जिसमें हिंदुओं की संख्या अधिक है लेकिन मुसलमान भी हैं. जबकि कुकी और नागा ईसाई है और ये जनजाति (ST) में आते हैं.

अब समुदाय का प्रभाव राजनीतिक प्रतिनिधित्व में दिखता है. इसके तहत मणिपुर में 60 विधायकों में 40 मतई समुदाय के विधायक हैं जबकि 20 नागा और कुकी जनजाति से आते हैं. वहीं, अब तक राज्य के 12 मुख्यमंत्री में केवल 2 जनजाति समुदाय से रहे हैं. वहीं, भौगोलिक परिदृश्य में मणिपुर में 10 प्रतिशत भूभाग पर मैतई समुदाय का दबदबा है जबकि, 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाके में मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती है. ये विवाद यहीं से पनपता है. क्योंकि मैतई समुदाय जनजाति का दर्जा की मांग कर रहे हैं.

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मैतई समुदाय का कहना है कि, 1949 में जब मणिपुर का भारत में विलय हुआ था तो इससे पहले मैतई समुदाय जनजाति में आते थे. लेकिन जनजाति समुदाय इसका विरोध कर रहा है कि, मैतई समुदाय को आरंक्षण नहीं मिलना चाहिए. क्योंकि वह संख्या में भी अधिक हैं और राजनीति में भी दबदबा है. उनको पहले से ही एससी और ओबीसी आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का आरक्षण मिला हुआ है और उसके फ़ायदे भी मिल रहे हैं. लेकिन अब जनजाति फायदे मिलेगे तो बाकी जनजातियों के लिए नौकरी और कॉलेजों में दाखिला का मौका कम जाएगा. इसके बाद मैतई समुदाय को पहाड़ों में जमीन खरीदने लगेंगे. इससे अन्य जनजाति को भारी नुकसान होगा.