Mahatma Jyotiba Phule Biography in Hindi: भारत में समाज के कल्याण के लिए ऐसे-ऐसे महापुरुषों ने लिया जिनमें से कईयों के बारे में शायद ही आपने सुना हो. जिन्होंने अपना जीवन समाज के कल्याण के लिए लगा दिया और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाया वो कोई और नहीं बल्कि महात्मा ज्योतिराव फुले या ज्योतिबा फुले थे. उन्होंने अपने जीवन का हर क्षण समाज की भलाई के लिए किए गए कामों में लगाए और दूसरों को भी शिक्षा दी. उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रिबाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं के अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी. चलिए आपको उनके जीवन (Jyotirao Phule Jeevani) से जुड़ी कुछ बातें बताते हैं.

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कौन थे महात्मा ज्योतिराव फुले? (Mahatma Jyotiba Phule Biography in Hindi)

11 अप्रैल, 1827 को तात्कालिक ब्रिटिश भारत के खानवाडी (पुणे) में ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म हुआ था. उनकी माता चिमनाबाई और पिता गोविंदराव थे. ज्योतिराव जब एक साल के थे तब उनकी माताजी का निधन हो गया था. इसके बाद उनकी परवरिश के लिए उनके पिता ने एक दाई को लगाया. इनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा मे रहता था जहां इनके बुजुर्गों ने फूलों का काम शुरू किया. इससे गजरा और माला बनाने का काम होता था और इसी तरह उनके परिवार में फुले सरनेजम जुड़ गया. ज्योतिराव फुले को महात्मा ज्योतिबा के नाम से भी जानते हैं.

ज्योतिबा की प्रारंभिक शिक्षा मराठी भाषा में हुए लेकिन बाद में जाति भेदबाव के कारण इनकी पढ़ाई छूट गई. 21 वर्ष की अवस्था में उन्होंने 7वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की थी. इन्होंने अंग्रेजी माध्यम से 7वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. 13 साल की उम्र में इनका विवाह सावित्रीबाई फुले के साथ कर दिया गया था. ज्योतिराव फुले की पढ़ाई जाति भेदभाव के कारण अधूरी रह गई और सावित्रिबाई फुले की पढ़ाई महिला होने के कारण अधूरी गई. दोनों ने मिलकर समाज की इस कुरीति को मिटाने का पूरा प्रयास किया और जिसमें काफी हद तक वो सफल भी रहे.

Mahatma Jyotiba Phule Biography in Hindi (2)
महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रिबाई फुले.

शिक्षा के क्षेत्र में ज्योतिबा फुले का प्रयास

शिक्षा के क्षेत्र में ज्योतिराव फुले का योदगान महत्वपूर्ण रहा. साल 1848 में उन्होंने एक स्कूल खोला था. स्त्री शिक्षा और उनकी दशा सुधारने के क्षेत्र में उनका ये पहला योगदान था लेकिन इसके बाद लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका नही मिली. इसके बाद उन्होंने मेहनत की और अपनी पत्नी सावित्रिबाई फुले को इस लायक बनाया कि वो महिलाओं को पढ़ा सकें. उनके इस कार्य में कुछ उच्च वर्ग के पितृसत्तात्मक विचारधारवादियों ने अड़चन डालने की कोशिश की लेकिन ज्योबिता रुके नहीं.

लोगों ने ज्योतिबा के पिता पर दबाव डालकर पत्नी सहित घर से निकलवा दिया, इससे उनके कार्य में बाधा आई लेकिन उनका उद्देश्य वही था हर किसी के लिए शिक्षा बराबर होनी चाहिए. ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी को महिलाओं की शिक्षा के आंदोलन के लिए आगे बढ़ाया और बाद में उन्हें सफलता भी मिली लेकिन ये लड़ाई उनके लिए बहुत सारी मुश्किलों को लेकर आई. समाज के कल्याण के लिए जीवनभर उन्होंने लड़ाई लड़ी जिसमें काफी हद तक उन्हें सफलता भी मिली लेकिन 18 नवंबर, 1890 को पुणे में ज्योतिराव फुले का निधन हो गया था.

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