लालू यादव भारतीय राजनीति का एक बड़ा नाम हैं. लालू यादव का राजनीतिक करियर 44 साल पहले शुरू हुआ था. वहीं, अब उनकी आरजेडी 25 साल की हो गई है. राष्ट्रीय जनता दल 5 जुलाई 2021 को पार्टी की 25वां स्थापना दिवस मना रहा है. पार्टी के कार्यकर्ताओं से लालू यादव 3 साल से दूर हैं ऐसे में 25वें सालगिरह पर कार्यकर्ताओं से मिलने के बाद सभी का मनोबल बढ़ गया है. पार्टी की कमान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उनके बेटे तेजस्वी यादव के हाथों में हैं लेकिन लालू यादव आज भी पार्टी के हाईकमान हैं.

लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल का गठन अपने राजनीति के उन सुनहरे दिनों में किया था जब वह अचानक संकट में आ गए थे. और जो शिकंजा उस वक्त कसा गया था वह उस शिकंजे से आजतक मुक्त नहीं हो पाए हैं.

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भारतीय राजनीति में 1996 से 1998 का दौर काफी उतार चढ़ाव भरा रहा था. इसी दौर में लालू यादव के ऊपर संकट के बादल मंडराने लगे थे और उन्होंने अपनी नई पार्टी का गठन किया था. इस दौर में लालू यादव जनता दल के अध्यक्ष भी थे और बिहार के मुख्यमंत्री पद को भी संभाल रहे थे.

लालू यादव पर संकट तब छाया जब लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले मामले में सीबीआई चार्टशीट दाखिल करने का फैसला किया था. हालांकि उनकी फाइल वाजपेयी सरकार में खुली थी. लेकिन इसे आगे बढ़ाने का काम एचडी देवगौड़ा ने किया था.

इंद्र कुमार गुजराल ने अपनी आत्मकथा मैटर्स ऑफ़ डिसक्रिएशन में कई जगहों पर इसका ज़िक्र किया है कि देवगौड़ा लालू को पसंद नहीं करते थे. उन्होंने एक प्रसंग में लिखा है, “मुझे पता चला कि लालू प्रसाद यादव पीएम निवास पर ढाई घंटे तक बैठे रहे थे जब तक कि देवगौड़ा ने सीबीआई डायरेक्टर को वहां नहीं बुलवा लिया था.”

ऐसा माना जाता है कि देवगौड़ा का पीएम पद से हटना उनका लालू यादव की नाराजगी की कीमत चुकानी पड़ी. अब इंद्र कुमार गुजराल को पीएम बनाया गया उन्हें लालू यादव की पसंद बताया गया था लेकिन उनके शासन में सीबीआई का शिकंजा लालू यादव पर कसता गया. आख़िर में 17 जून, 1997 को बिहार के राज्यपाल एआर किदवई ने लालू प्रसाद यादव के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल करने की अनुमति दे दी.

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लालू प्रसाद ने अपनी पुस्तक ‘राजनीतिक यात्रा गोपालगंज टू रायसीना’ में राष्ट्रीय जनता दल के गठन की वजह बताते हुए कहा है, “जुलाई, 1997 में पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव होना था. मैं नहीं समझ पाया कि आख़िर शरद जी ने किन वजहों से आख़िरी समय में अध्यक्ष पद की दौड़ में कूदने का फ़ैसला लिया. मैं अपने नेतृत्व में पार्टी को जीत दिला रहा था, बिहार में दूसरी बार सरकार बन गई थी, केंद्र में सरकार थी, उन्हें मेरा साथ देना था कि लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा पार्टी अध्यक्ष पद पर मुझे हटाकर काबिज़ होने की हो गई. यहां मेरा धैर्य ख़त्म हो गया और मैंने सोच लिया कि अब काफ़ी हो गया है.”

संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब में लिखा है, “चार जुलाई को आईके गुजराल ने अपने घर पर सभी सहयोगी दलों के नेताओं को खाने पर बुलाया था. लालू उस पार्टी में शामिल हुए थे. उन्होंने पार्टी में ही गुजराल से कहा कि आप शरद यादव से कहिए वे चुनाव से हट जाएं, मैं पार्टी नहीं तोड़ूंगा. लेकिन इंद्र कुमार गुजराल ये प्रस्ताव शरद यादव से कहने की स्थिति में भी नहीं थे.”

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संकर्षण ठाकुर ने यह भी लिखा है कि लालू प्रसाद यादव ने गुजराल को दूसरा प्रस्ताव भी दिया कि वे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देंगे लेकिन अध्यक्ष पद नहीं छोड़ेंगे. हालांकि तब तक यह तय हो चुका था कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से देर सबेर इस्तीफ़ा देना ही पड़ेगा. इस रात के बाद अगली सुबह पांच जुलाई को बिहार सदन में लालू प्रसाद यादव ने राष्ट्रीय जनता दल के गठन का एलान कर दिया था. उनके नेतृत्व में पार्टी के 22 सांसदों में 16 सांसद शामिल हुए और छह राज्यसभा के सांसदों ने भी लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया.

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