भारत की इस पवित्र धरती पर सालों से कई वीरों ने जन्म लिया है. ऐसे वीर जिन्होंने अपने देश के नाम जान न्योछावर करने से पहले एक बार भी नहीं सोचा. उस उम्र में जब युवा अपने करियर को लेकर चिंतित होते हैं, भारत का क्रांतिकारी बेटा खुदीराम बोस (Khudiram Bose) देश के लिए फांसी पर लटक गया था. आज ही के दिन यानी 11 अगस्त 1908 में भारत के ऐसे ही वीर क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी. ऐसे क्रांतिकारियों के बारे में हमें पढ़ना चाहिए. इसी वजह से आज हम आपको खुदीराम बोस की जिंदगी से जुड़ी कुछ अहम बातें बताने जा रहे हैं.

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खुदीराम बोस बचपन से ही भारत के लिए मर मिटने को तैयार थे. स्कूल में पढ़ाई करते हुए भी वह राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े हुए थे. इसके साथ ही वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होने वाले जुलूसों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे. वह भी बाकी क्रांतिकारियों की ही तरह अंग्रेजी साम्यवाद के खिलाफ थे और भारत की आजादी चाहते थे.

खुदीराम ने 9वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की जिसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया. स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम, रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम पैंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ में हुए रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट कांड में भी वह शामिल हुए जिसके बाद उन्होंने प्रफुल्ल चंद्र चाकी के साथ एक बेहद क्रूर अंग्रेजी अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने का फैसला किया. वह मुजफ्फरनगर में किंग्सफोर्ड को मारने के लिए पहुंच गए. उन्होंने अंग्रेजी अधिकारी किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम विस्फोट किया लेकिन उस बग्गी में वह अफसर नहीं बल्कि उनकी पत्नी और बेटी मौजूद थी. जिनकी मौके पर ही मौत हो गई.

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इसके बाद दोनों को पुलिस ने वैनी रेलवे स्टेशन पर घेर लिया. खूद को पुलिस से घिरा पाकर प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने तो खुद की जान ले ली, वहीं खुदीराम बोस को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने खुदीराम को फांसी की सजा देने का फैसला किया. कई रिपोर्ट्स में कहा जाता है कि खुदीराम को फांसी के वक्त तक भी कोई डर या गम नहीं था.

जिस वक्त खुदीराम को फांसी दी गई तब उनकी उम्र 18 साल 8 महीने और 8 दिन थी. 11 अगस्त 1908 को उन्हें फांसी दी गई थी. जिसके बाद कई युवा अंग्रेजी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतर आए थे. स्कूल और कॉलेज कुछ समय तक बंद करने पड़े और युवा ऐसी धोती पहन कर प्रदर्शन कर रहे थे जिस पर खुदीराम लिखा हुआ था. 

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