तकरीबन 200 सालों तक भारत पर राज करने के बाद अंग्रेजों ने जाते-जाते बंटवारे की एक ऐसी रेखा खीचीं जिसमें लाखों लोगों की आहुति पड़ी. एक तरफ जहां आजादी का जश्न था वहीं दूसरी तरफ कई बच्चे अनाथ हो गए तो कई औरतें विधवा हो गईं. इन सब की वजह थी भारत और पाकिस्तान का बंटवारा. जिसे धार्मिक बंटवारा कहना गलत नहीं होगा.

बात है 14 अगस्त 1947 की. जब ब्रिटिश वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने पाकिस्तान और भारत के बंटवारे के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिया. आधिकारिक तौर पर सिर्फ भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान भी आजाद हुआ था. आजादी की खुशखबरी के बीच यह खबर भी लोगों को मिलीं कि अब बंटवारे के चलते उन्हें अपना घर, मातृभूमि सब कुछ छोड़कर किसी दूसरी जगह जाना होगा जहां ना तो उन्हें कोई जानता है और ना ही वे किसी को.

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दंगों में गई 20 लाख लोगों की जान  

ब्रिटिश सरकार के फैसले के अनुसार भारत का दो तरफ से बंटवारा कर दिया गया. एक पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान. मुस्लिम लीग की मांग को मानते हुए माउंटबेटन ने मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान का निर्माण कर दिया था. अब हुआ ये कि जो मुस्लिम हिन्दुस्तान की सीमा में रह रहे थे वो पाकिस्तान की ओर चल दिए और जो हिन्दू और सिख समुदाय के लोग पाकिस्तान की सीमा में रह रहे थे वह बंटवारे के चलते अपना घर-बार छोड़कर भारत आने के लिए मजबूर हो गए.

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इस बीच दोनों देशों में धार्मिक दंगे शुरू हो गए. कई रिपोर्ट्स के अनुसार हिंसा इस कदर बढ़ गई थी कि भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेनों में सफर कर रहे मुस्लिम लोगों को बीच में ही मार दिया जाता था और जब ट्रेन पाकिस्तान पहुंचती थी तो उसमें केवल लाशों का ढेर ही होता था. इसी तरह पाकिस्तान से भारत आने वाले लोगों की भी कुछ ऐसी ही दशा की जा रही थी. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार इन धार्मिक दंगों में तकरीबन 20 लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवां दी. इसके साथ ही दोनों ओर करीब 83,000 महिलाओं, युवतियों व बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया गया. हर तरफ सिर्फ खून-बदले और हिंसा का माहौल था.

ऐसा नहीं है कि बंटवारे का असर कुछ समय बाद खत्म हो गया, बल्कि आज भी भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में खटास मिटने का नाम नहीं लेती. 

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