Sarvepalli Radhakrishnan Essay, speech in Hindi; सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्म 5 सितंबर 1888 में ब्रिटिश इंडिया के मद्रास प्रेसिडेंसी (वर्तमान तमिलनाडु) के तिरुत्तानी में हुआ था. वे एक भारतीय दार्शनिक और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने 1962 से 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवाएं दीं. साथ ही 1952 से 1962 तक वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति भी रहे. वह 1949 से 1952 तक सोवियत संघ में भारत के दूसरे राजदूत और 1939 से 1948 (लगभग 10 वर्ष) तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चौथे कुलपति भी रहे, वे पंडित मदन मोहन मालवीय के बाद कुलपति के रूप में कार्यरत रहें.

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सर्वपल्ली राधाकृष्णन का प्रारंभिक जीवन

उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरस्वामी और मां का नाम सीता (सीताम्मा) था. उनका परिवार आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के सर्वपल्ली गांव का रहने वाला है. उनके प्रारंभिक वर्ष तिरुत्तानी और तिरुपति में व्यतीत हुए. उनके पिता एक स्थानीय जमींदार की सेवा में एक अधीनस्थ राजस्व ( रेवेन्यु कलेक्टर) अधिकारी थे. उनकी प्राथमिक शिक्षा केवी हाई स्कूल तिरुत्तानी में हुई थी.

राधाकृष्णन की शादी 16 साल की उम्र में दूर की चचेरी बहन शिवकामु से हुई थी. दंपति की पद्मावती, रुक्मिणी, सुशीला, सुंदरी और शकुंतला नाम की पांच बेटियां थीं. उनका सर्वपल्ली गोपाल नाम का एक बेटा भी था, जिसने एक इतिहासकार के रूप में एक उल्लेखनीय करियर बनाया. 

सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा

राधाकृष्णन को उनके पूरे शैक्षणिक जीवन में स्कॉलरशिप से सम्मानित किया गया था. उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा के लिए वेल्लोर के वूरहिस कॉलेज में दाखिला लिया. उसके बाद उन्होंने 16 साल की उम्र में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया. उन्होंने 1907 में वहां से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और उसी कॉलेज से मास्टर्स की डिग्री भी हासिल की.

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राधाकृष्णन ने पसंद के बजाय संयोग से दर्शनशास्त्र (Philosophy) का अध्ययन किया. आर्थिक रूप से थोड़े कमजोर छात्र होने के नाते, जब उनके एक चचेरे भाई ने अपनी फिलॉसफी की किताबें राधाकृष्णन को दीं, तो उन्हें उस कॉलेज में उसी को अपना विषय बनाकर अपनी पढ़ाई पूरी की.

सर्वपल्ली ने अपनी स्नातक की थीसिस “द एथिक्स ऑफ द वेदांत एंड इट्स मेटाफिजिकल प्रेस्पॉजिशन” पर लिखी. इसके बाद उन्होंने भारतीय दर्शन और धर्म के ऊपर कई किताबें लिखी जिनमें भारतीय सभ्यता का वर्णन था.

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BHU के वाइस चांसलर रहे 

अपने जीवन काल में सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रख्यात कॉलेज और यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहें. यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर और कोलकाता यूनिवर्सिटी में उन्होंने फिलॉसफी के प्रोफेसर के तौर पर रहे. सर्वपल्ली आंध्र यूनिवर्सिटी और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर के तौर पर कार्यरत रहे और शिक्षा के क्षेत्र में इन्होंने कई महत्वपूर्ण योगदान दिए.

ऐसा कहा जाता है कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन कभी भी किसी राजनैतिक पार्टी से पूरी तरह नहीं जुड़े, कांग्रेस पार्टी में भी बस उनका आना जाना था. इतिहासकार डोनाल्ड मैकेंजी ब्राऊन ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन के लिए कहा कि वे आज़ादी की लड़ाई में भी उतने सक्रिय नहीं थे. इन्होंने भारत की हिन्दू सभ्यता को प्रख्यात करने के लिए काम किया.

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इस तरह 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा 

जब राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने, तो उनके कुछ छात्रों और दोस्तों ने उनसे 5 सितंबर को अपना जन्मदिन मनाने की अनुमति देने का अनुरोध किया. उसके जवाब में उन्होंने कहा, “मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय, यह मेरे लिए गौरव की बात होगी अगर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए.” इसके बाद से ही 1962 से उनके जन्मदिन को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 1954 में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया. उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार के लिए 16 बार और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ग्यारह बार नामांकित किया गया था. 86 साल की उम्र में, 17 अप्रैल 1975 को इनकी मृत्यु तमिलनाडु के चेन्नई में हुई.