Harela Parv Par Nibandh In Hindi: भगवान शिव को अतिप्रिय माने जाने वाले सावन के महीने की शुरुआत 4 जुलाई से हो चुकी है. लेकिन भारत के विभिन्न राज्यों में सावन माह की शुरुआत अलग-अलग तिथियों से मानी जाती है. ऐसे में देवभूमि उत्तराखंड में सावन की शुरुआत हरेला पर्व (Harela 2023) से मानी गयी है. आपको बता दें कि हरेला उत्तराखंड का लोकपर्व है, जो कर्क संक्रांति के दिन मनाया जाता है. हरेला पर्व (Harela Parv Essay In Hindi) साल में तीन बार मनाने का रिवाज है, पहला चैत्र मास, दूसरा सावन मास और तीसरा आश्विन महीने में. तो चलिए जानते हैं, हरेला पर्व से जुड़ी 10 महत्वपूर्ण बातें.

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हरेला पर्व से जुड़ी 10 महत्वपूर्ण बातें –

1- हरेला का पर्व मुख्य रूप से उत्तराखंड का पर्व है. उत्तराखंड में इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है.

2- उत्तराखंड में सावन महीने की शुरुआत हरेला पर्व से मानी जाती है. हालांकि, अधिकतर राज्यों में सावन महीने की शुरुआत 4 जुलाई से हो चुकी है. एक ही माह की अलग अलग तिथियों में सावन माह की शुरुआत भी देश की धार्मिक रीतियों की विविधता को दर्शाती है.

3- अगर देखा जाए तो अधिकतर त्योहार साल में एक बार मनाए जाते हैं, वहीं हरेला (Harela Parv Essay In Hindi) एक ऐसा पर्व है, जो साल भर में तीन बार चैत्र, श्रावण और आषाढ़ के शुरु होने पर मनाया जाता है.

4- इस पर्व का बहुत महत्व है. हरेला त्योहार से 9 दिन पहले घर के मंदिर या गांवों के देवालयों के अन्दर सात प्रकार के अन्न जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसो, उड़द और भट्ट को टोकरी में रोपित किया जाता है. इससे लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है. पहले टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछाई जाती है, फिर इसमें सात प्रकार के अनाजों के बीज बोए जाते हैं.

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5- टोकरी में बोए जाने वाले सात प्रकार के बीजों की 9 दिन तक अच्छे से देखभाल की जाती है और इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और 10 वें दिन यानी की हरेला के दिन इसे काटा जाता है. कुछ जगहों पर हरेला नौंवें दिन ही काटने की परंपरा है.

6- हरेला काटने के बाद गृह स्वामी द्वारा इसे तिलक चंदन अक्षत से अभिमंत्रित करने का रिवाज चला आ रहा है, इसे ही हरेला पतीसना के नाम से पुकारते हैं, उसके बाद इसे देवता को अर्पित किया जाता है.

7- इस प्रक्रिया के बाद घर की बुजुर्ग महिला सभी सदस्यों को हरेला लगाती हैं. लगाने का अर्थ यह है कि हरेला सबसे पहले पैर, फिर घुटने, फिर कंधे और अंत में सिर में रखा जाता है और आशीर्वाद स्वरूप यह पंक्तियां, जी रये, जागि रये … धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये… सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो,,, दूबे जस फलिये , सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये” बोली जाती है. इसका अर्थ है कि हरियाला तुझे मिले, जीते रहो, जागरुक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान, आकाश के समान उदार बनो, सूर्य के समान तेजस्वी, सियार के समान बुद्धि हो, दूर्वा के तृणों के समान पनपते हुए और इतने दीर्घायु हो कि दंतहीन होने पर चावल भी पीस कर खाना पड़े और शौच जाने के लिए लाठी का उपयोग करना पड़े, तब भी तुम जीवन का आनंद ले सको. बड़े बुजुर्गों की ये दुआएं छोटों के जीवन में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक बनती हैं.

8- हरेला पर्व का इतना ज्यादा महत्व माना जाता है कि अगर परिवार का कोई सदस्य पर्व के दिन घर से दूर है, तो उसके लिए हरेला रख लिया जाता है और जब वह घर आता है , तो बड़े बुजुर्ग उसे हरेला से पूजते हैं. वहीं कई लोग अपने दूरस्थ सदस्यों को हरेला भेजते भी हैं.

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9- हरेला पर्व परिवारों को जोड़ने का काम करता है. किसी भी संगठित परिवार में हरेला एक ही जगह पर बोया जाता है. परिवार के विभाजन के बाद ही सदस्य अलग हरेला बो और काट सकते हैं. ऐसे में आज भी इस पर्व ने बहुत से परिवारों को एकजुट कर रखा है.

10- हरेला पर्व सुख, समृद्धि , शांति एवं पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक माना गया है. इस दिन शिव-परिवार की मूर्तियां गढ़ने का भी प्रावधान है, जिन्हें डिकारे कहा जाता है. आपको बता दें कि शुद्ध मिट्टी की आकृतियों को प्राकृतिक रंगों से शिव परिवार की प्रतिमाओं को आकार दिया जाता है और विधि विधान से पूजा की जाती है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.