Badrinath Temple History: उत्तराखंड में यमुनोत्री, गंगोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट खुल गए हैं. अब चारधाम के आखिरी केंद्र यानी बद्रीनाथ धाम के कपाट भी आज 27 अप्रैल को खुलने जा रहे हैं. बदरीनाथ धाम (Badrinath Temple History) भी आज सुबह 7.10 बजे मिनट से वैदिक मंत्रोच्चारण और पुष्प वर्षा के बीच श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिया जाएगा. इसके साथ ही इस साल की चारधाम यात्रा 2023 पूरे विधि-विधान के साथ शुरू होगी. आइये जानते हैं बद्रीनाथ धाम के इतिहास के बारे में.

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क्यों कहा जाता है बद्रीनाथ

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक समय में भगवान विष्णु के इस धाम के पास जंगली जामुन यानी बद्री बहुतायत में पाए जाते थे. इसी बद्री के कारण इस धाम का नाम बद्रीनाथ पड़ा. बद्रीनाथ नाम के पीछे भी एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि एक बार जब भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे तो अचानक हिमपात होने लगा. तब माता लक्ष्मी ने बेर यानी बद्री के पेड़ का रूप धारण किया और उन्हें धूप, बारिश और बर्फ से बचाया. जब भगवान विष्णु ने अपनी आंखें खोलीं, तो उन्होंने देखा कि देवी लक्ष्मी स्वयं बर्फ से ढकी हुई हैं. मां लक्ष्मी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ इसी स्थान पर पूजा करूंगा. चूंकि देवी लक्ष्मी ने बद्री वृक्ष का रूप धारण किया और उनकी रक्षा की, इसलिए श्री विष्णु ने कहा कि यहां मुझे बद्री के नाथ यानी बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा.

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मंदिर में किसने भगवान बद्रीनारायण की मूर्ति स्थापित की

बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार बद्रीनारायण की पूजा की जाती है. यहां उनकी 1 मीटर ऊंची शालिग्राम की बनी मूर्ति है. माना जाता है कि इस मूर्ति की स्थापना आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी. यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु की यह मूर्ति यहां स्वयं स्थापित हुई थी.

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बद्रीनाथ मंदिर की महिमा

स्कंद पुराण में बद्रीनाथ मंदिर का उल्लेख करते हुए लिखा हुआ है कि, ‘बहुनि सन्ति तीर्थानि दिव्य भूमि रसातले’. बद्री सदृष्य तीर्थ न भूतो न भविष्ययति: ॥’, जिसका अर्थ है, ‘तीनों लोकों यानी स्वर्ग, पृथ्वी और नरक में कई तीर्थ हैं, लेकिन उनमें से कोई भी बद्रीनाथ जैसा नहीं है, ना था और ना कभी होगा.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)