जब इंसान कहीं भी बाहर जाता है तो उसे रास्ते में साइन बोर्ड मिल जाते हैं जिसकी सहायता से वह अपनी मंजिल पर बिना किसी अड़चन के पहुंच जाता है. इसके अलावा गूगल मैप की सहायता से भी इंसान अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि समुद्र में रहने वाले कछुए और अन्य जीव अपना रास्ता कैसे ढूंढते होंगे उन्हें कैसे पता चलता होगा कि उन्हें इसी दिशा में जाना है. बता दें कि वैज्ञानिक लंबे समय से इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश में लगे हुए हैं.

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हाल ही में जर्नल ऑफ दी रॉयल सोसायटी इंटरफेस में प्रकाशित हुए एक नए शोध से पता चला कि कछुओं में बेसिक ज्योमैग्नेटिक स्टीयरिंग होता है, परंतु वह अभी भी अपनी मंजिल तलाशने के लिए अपने भाग्य और आत्मविश्वास पर निर्भर हैं.

शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने 22 हॉक्सबिल कछुओं (Hawksbill Turtles) में जीपीएस ट्रैकर लगाया ताकि पता लगाया जा सके कि संभोग और प्रजनन के बाद कछुए अपने घर वापस किस रास्ते से आते हैं. इन ट्रैकर्स से पता चला कि वापसी के लिए कछुए के रास्ते काफी घुमावदार थे.

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खुद से सिर्फ 176 किलोमीटर दूर एक आईलैंड को खोजने के लिए एक कछुए ने 1306 किलोमीटर की यात्रा की. शोधकर्ताओं ने पाया कि सामान्य तौर पर जानवरों को जमीन तक पहुंचने के लिए बहुत तैरना पड़ा था. शोधकर्ताओं का कहना है कि हमारी नतीजों से ये सबूत मिलते हैं कि हॉक्सबिल कछुओं में खुले समुद्र में नक्शे को समझने की कम क्षमता होती है.

समुद्री कछुओं को समुद्र में लंबी दूरी तय करने के लिए जाना जाता है. ये कछुए अक्सर अलग-थलग द्वीपों पर बहुत दूर कहीं से आ जाते हैं. सवाल ये उत्पन्न होता है कि वह खुले पानी से घिरी इन जगहों को आखिर कैसे ढूंढ लेते हैं. पहले के शोधों से पता चलता है कि कछुए पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड की समझ रखते हैं. इसकी सहायता से वह अपना रूट बनाते हैं. हालांकि अभी तक ये साफ नहीं हुआ है कि ये मैग्नेटिक मैपिंग तकनीक कितनी सही है.

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अपने घर तक पहुंचने के लिए इन कछुओं ने लगभग दुगनी दूरी तय की. हालांकि कछुओं की दूसरी प्रजातियों की तुलना में हॉक्सबिल कछुओं ने इस दूरी को तय करने में बहुत कम समय लिया. कई प्रजातियां पृथ्वी के चारों ओर के चुंबकीय क्षेत्र की ताकत और दिशा में परिवर्तन का इस्तेमाल करती है ताकि वे ये पता लगा सके कि उन्हें किस दिशा में जाना है. इन कछुओं के मामले में ये नेविगेशन केवल कुछ हद तक काम करते हैं.

शोधकर्ताओं के अनुसार, समुद्र की धाराओं ने कछुओं के एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचने के तरीके को प्रभावित नहीं किया. इसके अलावा कछुए निकलने से पहले सही मौसम का रास्ता भी नहीं देख रहे थे. उन्होंने प्रजनन के ठीक बाद अपनी यात्रा शुरू कर दी थी. समुद्री पक्षी आमतौर पर हवा में फैली गंदगी की वजह से अपनी मंजिल को जल्दी ढूंढ लेते हैं, लेकिन समुद्री कछुओं के पास ऐसे कोई संकेत नहीं होते. शोध में कहा गया कि हमारे नतीजे बताते हैं कि समुद्री कछुए की नेविगेशन क्षमताएं बहुत अच्छी नहीं होती. उनकी यात्रा उनकी सेंसरी क्षमता की वजह से बेहतर हो सकती है. 

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