भगवान शिव के महीने के रूप में जाना जानेवाला सावन (Sawan) महीना 14 जुलाई से शुरू हो रहा है. सावन के महीने में शिव भक्त कांवड़ यात्रा करते हैं. ये चलन सदियों से चली आ रही है. जिसमें भक्त कांवड़ लेकर गंगाजल लने जाते हैं और लंबी यात्रा कर उस जल को भोलेनाथ पर अर्पित करते हैं. कोरोना महामारी के बाद इस साल कांवड़ यात्रा की अनुमति कई स्थानों पर दी गई है.

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पौराणिक कथाओं को देखें तो कांवड़ यात्रा का इतिहास भगवान परशुराम से ही जुड़ा है. जो भगवान शिव के परम भक्त थे. ऐसी मान्यता है कि, एक बार परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लेकर यूपी के बागपत जिले के पास पुरा महादेव गए और भोलेनाथ का जलाभिषेक किया. उस वक्त सावन का महीना चल रहा था. तब से ही सावन में कांवड़ यात्रा का चलन शुरू हो गया. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार समेत कई राज्यों में शिव भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं.

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ऐसा कहा गया है कि परशुराम ने पैदल चल कर कांवड़ यात्रा की थी. हालांकि, समय बदला और इसमें कई तरह के कांवड़ यात्रा और नियम को बनाए गए. तो चलिए हम आपको इन कांवड़ यात्रा के बारे में बताते हैं.

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खड़ी कांवड़ यात्रा

जो शिव भक्त कंधे पर कांवड़ लेकर पैदल यात्रा करते हुए गंगाजल लेने जाते हैं और पैदल चलकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं इसे खड़ी कांवड़ यात्रा कहते हैं. ये काफी कठिन होता है. क्योंकि, यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता है. यात्रा के दौरान कांवड़िये को अगर भोजन करना है या आराम करना है तो वह कांवड़ को स्टैंड में रखेगा या किसी अन्य कांवड़िये को कांवड़ पकड़ने देगा.

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झांकी कांवड़ यात्रा

आज के समय में झांकी कांवड़ यात्रा निकाले जाते हैं. इस यात्रा में कांवड़िये कांवड़ पर झांकी लगाकर चलते हैं. इस कांवड़ यात्रा में भक्त किसी ट्रक, जीप या किसी गाड़ी के साधन से शिव प्रतिमा रखकर भजन गाते हुए चलते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान भगवान शिव की प्रतिमा का श्रृंगार करते हैं. ये पैदल कांवड़ यात्रा से थोड़ा कम मुश्किल होता है.

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डाक कांवड़ यात्रा

डाक कांवड़ यात्रा सबसे कठिन यात्रा होती है. इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िये जब मंदिर से 24 या 36 घंटे की दूरी बचती है तो कांवड़िये कांवड़ में जल लेकर दौड़ते हुए मंदिर पहुंचते हैं. इसे शुरू करने से पहले संकल्प लिया जाता है और यात्रा के दौरान उन्हें रूकना नहीं होता है. अगर वह रूकते हैं तो कहा जाता है संकल्प टूट जाता है और उनकी डाक कांवड़ यात्रा अधूरी रह जाती है.