भगवान शिव को समर्पित सावन का महीना 14 जुलाई से आरम्भ हो रहा हैं. हिंदू धर्म में बेहद पवित्र माना जाने वाला यह श्रावण मास 12 अगस्त तक रहेगा. मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान शिव को जल और बेलपत्र समर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

सावन में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) का भी बहुत महत्व है. हजारों-लाखों की संख्या में शिव भक्त गंगा नदी से पवित्र जल अपनी कांवड़ों में भरकर भगवान शिव को चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं. इस साल यह यात्रा 14 जुलाई 2022 से प्रारंभ होकर 26 जुलाई 2022 तक चलेगी. हमारे देश में कांवड़ यात्रा का इतिहास काफी पुराना हैं. आइये जानते है, इस पवित्र यात्रा की शुरुआत कैसे हुई थी, इसका महत्व और इससे जुड़े नियम.

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कैसे हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत

कांवड़ यात्रा की शुरुआत के संबंध में तीन कथाएं प्रचलित है.

1.कुछ विद्वानों का मानना है कि भगवान परशुराम इस यात्रा की शुरुआत कर पहले कांवड़िये बने थे. उन्होंने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था, तभी से इस यात्रा की शुरुआत हुई.

2.इसके अलावा कांवड़ यात्रा की शुरुआत से जुड़ी एक और मान्यता प्रचलित हैं. कहा जाता है कि सबले पहले श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी. अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय हिमाचल के ऊना में उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया. उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए. वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए. माना जाता है तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.

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3. कुछ लोगों के अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी. मंथन से निकले विष को पीने की वजह से शिव जी का कंठ नीला पड़ गया और विष का बुरा असर शिव जी पर पड़ने लगा. विष के प्रभाव को दूर करने के लिए शिवभक्त रावण ने घोर तप किया और साथ ही कांवड़ में जल भरकर पुरा महादेव में शिवजी का जलाभिषेक किया. रावण के द्वारा जलाभिषेक करने से शिव जी विष के प्रभाव से मुक्त हुए. तब से ही  इस यात्रा की शुरुआत होना बताया जाता है.

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कांवड़ यात्रा के नियम

कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है. कांवड़ यात्रा पर जाने वाले भक्तों को इस दौरान कुछ नियमों का  पालन करना होता है.

1.इस दौरान भक्तों को नंगे पांव, पैदल यात्रा करनी होती है.

2.यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन करना होता है.

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3.कांवड़ को जमीन पर रखने की मनाही हैं.जमीन पर ना रखकर इसे किसी पेड़ पर लटकाना होता है. अगर आप कांवड़ को जमीन पर रख देते हैं तो आपको दोबारा से गंगाजल भरकर फिर से यात्रा शुरू करनी पड़ती है.

4.बिना स्नान किए कांवड़ को हाथ नहीं लगाया जाता है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.