आज 14 जुलाई से भगवान शंकर का सबसे प्रिय माना जाने वाला पवित्र सावन का महीना शुरू हो रहा है (Shravan start date 2022). इसके साथ ही आज से कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra 2022) भी आरंभ हो रही हैं. यह 14 जुलाई 2022 से शुरू होकर 26 जुलाई 2022 तक चलेगी.

हिंदू धर्म में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है. हर साल लाखों शिव भक्त कावड़ लेकर गंगा जल लेने हरिद्वार जाते (Haridwar) हैं और वहां से जल लाकर शिवजी का जलाभिषेक करते हैं. भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए यह यात्रा की जाती हैं लेकिन इस यात्रा के कुछ कठिन नियम होते हैं जिन्हें कावड़ियों को मानना होता हैं. क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा के भी अलग-अलग प्रकार होते हैं? आइये जानते हैं कांवड़ यात्रा कितने तरह की होती हैं, इससे जुड़े नियम और इसका महत्व.

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कांवड़ यात्रा के नियम (Kanwar Yatra Rules) 

1.कावड़ यात्रा में शुद्धता और साफ-सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. बिना स्नान किए भक्तों को कांवड़ को हाथ लगाने की मनाही हैं.

2. गंगा जल से भरी हुई कावड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए. इससे कांवड़ की पवित्रता पर असर पड़ता है. इस स्थिति में कांवड़ को पेड़ जैसे किसी ऊंचे स्थान पर ही रखना चाहिए.

3.कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को सात्विक भोजन करना होता हैं. कावड़ियों को मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से पूरे सावन के महीने दूर रहना चाहिए.

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कांवड़ यात्रा से जुड़ी कथा (Kanwar Yatra Katha)

कहा जाता हैं कि सबसे पहले त्रेता युग में श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए कांवड़ यात्रा की थी. वे अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार ले गए थे. इसके बाद उन्होंने अपने माता-पिता को गंगा में स्नान कराया और वापस लौटते समय गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ाया तब से ही कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.

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कांवड़ यात्रा के प्रकार (Types of Kanwar Yatra) 

खड़ी कांवड़ यात्रा

खड़ी कावड़ यात्रा को सबसे कठिन कावड़ यात्रा माना जाता है, इस यात्रा में न तो कांवड़ जमीन पर रखी जाती है और ना ही कहीं पर टांगी जाती है. शिव भक्तों को पैदल यात्रा करते हुए कावड़ को कंधे पर रखकर गंगाजल लाना होता है. किसी कारण से अगर कावड़ियें को रुकना पड़े तो कांवड किसी दूसरे साथी कावड़ियें को दी जा सकती हैं.

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श्रृंगार कांवड़

कांवड़ यात्रा का यह काफी नया और अनोखा तरीका है. इस तरह की कांवड़ यात्रा में भगवान शिव की विभिन्न झांकियां निकाली जाती हैं. इस यात्रा के दौरान भगवान शिव का श्रृंगार भी होता हैं और नाचते-गाते हुए ही कांवड़िये गंगाजल लेने पहुंचते हैं.

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डाक कांवड़

जब मंदिर की दूरी 36 से 24 घंटे के बीच रह जाती है तो कांवड़ यात्री गंगाजल लेकर दौड़ते हुए जाते हैं. एक थक जाता है तो वह दूसरे को कांवड सौंप देता है. डाक कांवड़ यात्रा बेहद कठिन मानी जाती हैं. इस यात्रा को करने से पहले संकल्प लेना होता है लेकिन युवाओं में डाक कांवड़ को लेकर खासा उत्साह देखने को मिलता है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.