भारत 35 करोड़ देवी-देवताओं की भूमि है, जो अपने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है. भारत में आपको विभिन्न देवी देवताओं के मंदिर देखने को मिल जाएंगे, जिन्हें अपनी संस्कृति, मान्यताओं या सिद्धि की वजह से जाना जाता है. यहां कई पवित्र मंदिर बने हुए हैं. भारत में कई रहस्यमय मंदिर भी हैं.

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आपको जानकारी के लिए बता दें कि भारत में दुर्गा मां के कई प्रसिद्ध मंदिर बने हुए हैं, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं. अनोखी घटनाओं के लिए ये मंदिर बड़े प्रसिद्ध हैं. यहां हम भारत के शक्तिशाली देवी दुर्गा के मंदिरों के बारे में बता रहे हैं. आज हम आपको ऐसे मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने अनोखी घटनाओं की वजह से प्रसिद्ध हैं. तो चलिए फिर आपको उस मंदिरों की जानकारी देते हैं.

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कसार देवी, अल्मोड़ा

उत्तराखंड में अल्मोड़ा स्थिति कसारदेवी शक्तिपीठ है. देवदार के जंगलों के बीच में स्थित मंदिर हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बंदरपंच चोटी से अल्मोड़ा, हवालबाग घाटी और हिमालय के दृश्य दिखाई देते हैं. इस मंदिर का निर्माण लगभग दूसरी शताब्दी में किया गया था. उसके बाद से ही ये मंदिर ध्यान और साधना का प्रमुख केंद्र बन गया है. क्योंकि इस मंदिर के आसपास का पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है.

इसके अलावा इस मंदिर में महान भारतीय संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने ध्यान किया था.ऐसा माना जाता है कि मंदिर में जलने वाली धूनी की राख से किसी भी प्रकार का मानसिक रोग दूर हो सकता है. बता दें कि आसपास एक अनोखी चुंबकीय शक्ति श्रद्धालुओं को मानसिक शांति प्रदान करती है.

 इस मंदिर में महान भारतीय संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने ध्यान किया था.

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ज्वाला देवी , कांगड़ा

धर्मशला से लगभग 56 किमी दूर ज्वाला देवी का मंदिर अपनी शाश्वत ज्योति के लिए जाना जाता रहा है. मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालामुखी मंदिर काफी प्रसिद्ध है. इस मंदिर को जोता वाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी. यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं.

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार एक गर्वित सम्राट अखबर ने मंदिर को एक सुनहरा छाता दान किया, जो देवी की इच्छा से एक अज्ञात धातु में बदल गया. ज्वाला जी की लौ तब भी नहीं बुझी जब पहले कई अत्याचारी लोगों ने उस पर गैलेन पानी डालने का प्रयास किया.

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कामाख्या देवी, गुवाहटी

कामाख्या मंदिर सभी 108 शक्ति पीठों में से एक प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में हुई थी. कामाख्या मंदिर में देवी की योनि की मूर्ति की पूजा की जाती है. इसे गुफा के एक कोने में रखा गया है. इसके अलावा मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है.

इस मंदिर की खास बात यह है कि इसके गर्भगृह के भीतर देवी की किसी भी पत्थर की मूर्ति की पूजा नहीं की जाती. हर साल जून में यहां एक प्रसिद्ध मेला लगता है, जिसे अंबुबची मेला कहते हैं. एक मान्यता के अनुसार, इस दौरान देवी को मासिक धर्म होता है.

कामाख्या मंदिर में देवी की योनि की मूर्ति की पूजा की जाती है.

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करनी माता मंदिर, देशनोक

करनी माता मंदिर राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक में करणी माता को समर्पित है. इसे चूहों का मंदिर भी कहते हैं. हर साल बड़ी मात्रा में श्रद्धालु इन मंदिरों में अपने भगवान की पूजा करने के लिए जाते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में कई सारे रहस्य छिपे हुए हैं, जिन्हें आज तक कोई नहीं जान पाया है. एक पौराणिक कथा के अनुसार, करणी माता एक दिव्य अवतार थीं, जिनका उद्देश्य लोगों की सेवा करना था. एक दिन उसकी बहन का बेटा पानी पीने की कोशिश में तालाब में डूब गया. करणी माता ने नश्वर देवता यम को लड़के के जीवन को बचाने की प्रार्थना की. आश्चर्य की बात है कि मंदिर के चूहों से आज तक कभी कोई बीमारी नहीं फैली है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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