Mangal Pandey Birth Anniversary: आज भी इस बात को लेकर बहुत बहस होता है की क्या 1857 का विद्रोह स्वतंत्रता संग्राम का विद्रोह था या नहीं? हर कोई इसको लेकर अपना अपना तर्क सामने रखता है.  लेकिन अगर सवाल को थोड़ा बदला जाए तो कहानी के दिलचस्प पहलू भी सामने आते हैं. अगर यह पूछा जाए कि 1857 का विद्रोह आज़ादी की लड़ाई में कैसे बदल गया, तो इन सवालों के जवाब की तलाश हमें उन पहलुओं पर गौर करने के लिए मजबूर करती है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि यह सब आज़ादी की लड़ाई में ही हुआ था. मगल पांडे जिन्हें देश का पहला क्रांतिकारी के नाम से भी जाना जाता है. उनकी कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

यह भी पढ़ें: What is Uniform Civil Code: क्या है समान नागरिक संहिता? क्यों हो रही है इसकी इतनी चर्चा

कैसे बनी आज़ादी की कहानी (Mangal Pandey Birth Anniversary)

एक सनकी से शुरू हुई उनकी कहानी कैसे पहले आत्मसम्मान की हानि और फिर स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी में बदल गई, यह एक महान परिवर्तन की उदाहरण है. यदि मंगल पांडे को 1857 के आंदोलन के संस्थापकों में से एक कहा जाए तो यह कहीं से भी गलत नहीं होगा. क्योंकि उस दौर में ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों का दर्द मंगल पांडे के बलिदान में झलका और ऐसी मशाल बनी कि कई अन्य मशालों को जलने में देर नहीं लगी.

यह भी पढ़ें: Political Opinion: मौजूदा राजनीति में अपने-अपने नहीं रहे तो जनता के कौन!

ब्राह्मण, कृषि और सेना

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया के नगवा गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था. उस वक्त देश में हिंदुओं को अपनी जाति, विशेषकर ब्राह्मणों, उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं से गहरा लगाव था, जिसके कारण ब्राह्मणों को सेना में जाना पसंद नहीं था. ऐसे में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में जाना मंगल पांडे का शौक नहीं था लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब हो रही थी.

यह भी पढ़ें: Who is Bidhan Chandra Roy: कौन थे बिधान चंद्र रॉय? जिनकी याद में मनाया जाता है नेशनल डॉक्टर्स डे

मंगल पांडे का व्यक्तिगत विद्रोह बन गया राष्ट्रीय विद्रोह

29 मार्च 1857 को जब कलकत्ता के बैरकपुर परेड मैदान में बंदूक से कारतूसों के प्रयोग का प्रदर्शन किया जा रहा था तो मंगल पांडे ने अपने कारतूसों को मुंह से काटने से इंकार कर दिया. और उन्होंने अपने साथियों से भी इसका विरोध करने को कहा, लेकिन जब वे नहीं माने तो उन्होंने खुद को गोली मारने की कोशिश की और घायल हो गए. बाद में मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल किया गया और उन्हें फांसी पर लटका दिया गया. इसका असर ब्रिटिश सेना पर उल्टा पड़ा और विद्रोह व्यापक और गहरा हो गया, जिसने क्रांति बनकर एक आंदोलन का रूप ले लिया.