इस्लाम धर्म में ईद-उल-अजहा त्योहार एक खास त्योहार है, जिसे कुर्बानी का दिन भी कहते हैं. इस्लाम में दो त्योहार मुख्य होते हैं एक ईद-उल-फितर जिसे मीठी ईद भी कहते हैं. दूसरा त्योहार है ईद-उल-अजहा, इसे बकरीद के नाम से भी जानते हैं. बकरीद अल्लाह पर भरोसा रखने का संदेश देता है. इस त्योहार की सीख है कि नेकी और अल्लाह के बताए रास्ते पर चलने के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है.

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क्यों कहते हैं कुर्बानी का दिन?

इस्लाम में ये त्योहार हजरत इब्राहिम के अल्लाह के प्रति विश्वास की याद में मनाया जाता है. इस्लामिक ग्रंथों के मुताबिक हजरत इब्राहिम, अल्लाह में सबसे ज्यादा विश्वास करते थे. उनकी परीक्षा लेने के लिए उन्हें अपने बेटे की कुर्बानी देने का हुक्म हुआ तो वह इसके लिए भी तैयार हो गए. लेकिन जैसे ही उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने के कोशिश की तो कुर्बानी के लिए उनके बेटे के बजाए एक दुंबा (बकरा) वहां आ गया. इसी बात को आधार मानकर बकरीद के दिन जानवरों की कुर्बानी दी जाती है. ये त्योहार अल्लाह पर भरोसे की मिसाल के तौर पर देखा जाता है.

ऐसा कहा जाता है कि ये त्योहार फर्ज निभाने का संदेश देता है. वैसे ‘ईद-उल-अजहा’ को ‘बकरीद’ कहना भारत में ही सबसे ज्यादा प्रचलित है. शायद इसलिए क्योंकि भारत में इस दिन ज्यादातर बकरे की कुर्बानी देने का चलन है.

ये त्योहार इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से पर्व रमजान के पाक महीने के करीब 70 दिनों बाद आता है.

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नोटः ये लेख मान्यताओं के आधार पर बनाए गए हैं. ओपोई इस बारे में किसी भी बातों की पुष्टि नहीं करता है.