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2 years ago .New Delhi, Delhi, India

देश की एक ऐसी जगह, जहां बहनें रक्षाबंधन के दिन नहीं बांधती राखी, जानें वजह

भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन का पर्व सावन की पूर्णिमा पर सम्पन्न किया जाता है. लेकिन देश में एक ऐसी भी जगह है जहां लीक से हटकर इसे अगले दिन मनाया जाता है. जानें इसकी वजह.

Written by:Kaushik
Published: August 11, 2022 03:45:55 New Delhi, Delhi, India

रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का पर्व सावन की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले देवी लक्ष्मी ने राजा बली को राखी बांधकर अपना भाई बनाया था. इस दिन सभी बहनें अपने भाई को राखी बांधकर उनके उज्‍जवल भविष्‍य की कामना करती हैं. राखी सिर्फ रेशम की डोर नहीं बल्कि रक्षा सूत्र है, जो हर बहन अपने भाई की कलाई पर बांधती हैं.

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लेकिन उत्तर प्रदेश के महोबा (Mahoba) में लीक से हटकर रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है. तब यहां बहन के द्वारा अपने भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है. इसके साथ ही कजली का विसर्जन भी किया जाता है. लोक परंपराओं और समृद्ध संस्कृतिक विरासत के लिए चर्चित बुंदेलखंड की कजली का अपना विशेष महत्व है. अलग बुंदेलों ने दूसरे क्षेत्रों से यहां इसे आन-बान-शान से जोड़कर रखा गया है. तभी कजली से जुड़ी 841 साल पुरानी घटना को भूल नहीं कर पाते, जिसमें महोबा को संकट से उबारने में ऊदल और रणबांकुरे आल्हा ने युद्ध कौशल का प्रदर्शन कर इतिहास रचा था.

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डेली न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक, रिटायर्ड प्रोफेसर और जगनिक शोध संस्थान के महासचिव डा. वीरेंद्र निर्झर ने बताया कि महाकाब्य ‘आल्हा’ में उल्लिखित यह विशिष्ट वाक्या वर्ष 1182 का है, जब चंदेल साम्राज्य की कीर्ति, वैभव और यश की चर्चा चहुंओर होने पर दिल्ली के नरेश पृथ्वी राज चौहान ने महोबा में हमला कर दिया था.

उस समय पृथ्वीराज के पुत्र करिया के नेतृत्व में आई सेना ने पूरे नगर की चारों तरफ घेराबंदी करके चंदेल नरेश परमर्दिदेव परमालद्ध को एक प्रस्ताव पहुंचाया, इस युद्ध को टालने के लिए उनका अधिपत्य स्वीकार करने एवं पांच प्रमुख चीजों को सौंपे जाने की मांग की थी.

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इसमे लोहे को छुलाने पर सोने में परिवर्तित कर देने वाली ‘पारस पथरी’, बेंदुला घोड़ा, नोलखा हार और चन्देल राजकुमारी चंद्रावल का डोला शामिल था. रक्षाबंधन के पर्व के दिन आन पड़े इस संकट ने परमाल के समक्ष भारी समस्या खड़ी कर दी थी. मामा माहिल के भड़कावे में आकर राज्य से निष्कासित कर दिए गए. दोनों वीर योद्धा ऊदल और आल्हा उस समय कन्नौज में निर्वासित जीवन बिता रहे थे. इसी कारण संकट के दौरान तब पूरे चन्देल राज्य में कजली विसर्जन की चल रही तैयारियां समेत सभी कार्यक्रम रोक पर रोक लगा दी थी.

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वीरभूमि राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रवक्ता डा एल सी अनुरागी ने बताया कि महोबा पर आए संकट की आल्हा-ऊदल तक सूचना महारानी मल्हना ने एक सेवक के जरिए पहुंचाई थी. अनुरागी के अनुसार, महोबा ओर आसपास के बड़े इलाकों में आज के समय में भी रक्षाबंधन और कजली को अगले दिन ही मनाए जाने की परंपरा है. महोबा में रक्षाबंधन के इस अवसर हर वर्ष पर कजली की आकर्षक शोभायात्रा भी निकाली जाती है. इसके अतिरिक्त यहां कीरत सागर सरोवर के तटबन्ध पर सात दिवसीय सुन्दर मेले का आयोजन भी किया जाता है.

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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