सनातन धर्म परंपरा में बिहार के गयाजी तीर्थ के बाद उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व है. उज्जैन में सिद्धवट, गया कोठा और रामघाट पर तर्पण का विधान है. देश-दुनिया से लोग यहां श्राद्ध पक्ष में आते हैं और अपने पूर्वजों के लिए तर्पण कार्य संपन्न करते हैं.

ज्योतिषाचार्य पं अमर डब्बावाला ने बताया कि पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध की विधि में कुल के नाम के साथ पूर्वजों के नाम का उल्लेख का विशेष महत्व होता है. आम लोगों की कई पीढ़ियों और पूर्वजों के नाम याद रखना आसान नहीं होता है. इसमें तीर्थ पुरोहितों के पास उपलब्ध पौथी बड़ी सहायक होती है. उज्जैन के अधिकांश तीर्थ पुरोहितों के पास 500 वर्ष पूर्व के अनेक परिवारों के पूर्वजों के नामों की पौथी बनी हुई है. अगर आप अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानते है तो यहां के पुरोहितों की पौथी में से आपको पूर्वजों की जानकारी मिल जाएगी.

ज्योतिषाचार्य पं अमर डब्बावाला के अनुसार-उज्जैन मोक्ष की नगरी है. यहां पर पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध से प्राणी को मोक्ष प्राप्त होता है. सिद्धवट क्षेत्र का शास्त्रों और पुराणों में उल्लेख भी मिलता है. सिद्धेश्वर महादेव और सिद्ध वट वृक्ष स्थान को प्राणी मोक्ष के लिए प्रमुख स्थान बताया गया है. इसका भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के लिए उतना ही महत्व है जितना महत्व गयाजी का है. इसके साथ रामघाट पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध का स्थान माना जाता है. भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी उज्जैन आकर रामघाट पर किया था.