कई बार कई ऐसे कानूनी मामले सामने आते हैं कि जिसमें सुबूत इकट्ठा करना बहुत मुश्किल हो जाता है और अपराधी से सच निकलवाने के लिए कुछ विशेष तरह के तरीके अपनाने पड़ते हैं. उन्हीं मे से एक तरीका है पोलिग्राफ परीक्षण (Polygraph Test). इस तरीके को अपनाकर किसी भी अपराधी से सच निकलवाने में काफी मदद मिलती है. भारत में पॉलीग्राफ (Polygraph) परीक्षण का प्रयोग किसी के ऊपर करने से पहले कोर्ट से अनुमति प्राप्त करना जरूरी है. देश में इसका सफल प्रयोग कई लोगों पर किया जा चुका है। ‌‌‌परन्तु कुछ व्यक्ति इससे भी चालाकी करने में कामयाब हुए है। पॉलिग्राफ टेस्ट से यह भी पता लग जाता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच बोल रहा है.

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क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?

आपको बता दें कि पॉलीग्राफ एक तरह की मशीन है. जिसका प्रयोग झूठ पकड़ने के लिए किया जाता है. ज्यादातर इसका उयपोग किसी अपराधी से सच बोलवाने के लिए किया जाता है. पॉलीग्राफ टेस्ट मशीन को झूठ पकड़ने वाली मशीन और लाई डिटेक्टर के नाम से भी जानते हैं. इसकी खोज जॉन अगस्तस लार्सन के द्वारा 1921 ई में की गई थी. इस मशीन की मदद से व्यक्ति कि हर्ट रेट, ब्लड प्रेसर आदि को परखने के बाद सच और झूठ के बारे में टेस्टिंग करने में मदद मिलती है. इस प्रक्रिया को पॉलीग्राफ टेस्ट कहते हैं.

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पॉलीग्राफ टेस्ट का इतिहास

आपको बता दें कि पॉलीग्राफ टेस्ट के विषय मे जानकारी सर्वप्रथम 1730 ब्रिटिस उपन्यासकार डैनियलडिफो ने एक निबंध लिखा था. जिसका शीर्षक था “An Effectual Scheme for the Immediate Preventing of Street Robberies and suppressing all Other Disorders of the Night,” जिसमें पॉलीग्राफ (Polygraph) के बारे में जानकारी दी थी. वहीं इसके बाद कई और लोगों ने भी एक्सपेरीमेंट किए. फिर 1921 के में जॉन लार्सन ने इसमे श्वसन दर को मेजर करना भी जोड़ दिया था . इसके पूर्व 1895 में, लोमब्रोसो, ने इसमें ब्लड प्रेसर नापने की इकाई को भी शामिल किया . इस तरह से समय के साथ चीजें इसमें जुड़ती गई और फैक्ट्स में सटीकता आती गई.