Narco Test: नार्को टेस्ट का प्रयोग किसी व्यक्ति से जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 के मुताबिक, किसी भी अपराधी (Criminal) को खुद की गवाही के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा किसी भी की जांच एजेंसी (Investigative Agency) के माध्यम से दबाव डालकर या फिर डरा-धमका कर किसी अपराधी से उसके खिलाफ गवाही नहीं ली जा सकती है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस दवा का असर किसी इंसान की आत्म-चेतना को कम करता है.

यह भी पढ़ें: लॉन्च के बाद NASA के Artemis 1 ने ली पृथ्वी की आश्चर्यजनक फुटेज, देखें VIDEO

जिससे अपराधी को बोलने की किसी प्रतिबंध के बोलने की परमिशन मिलती है. यह उस समय होता है जब व्यक्ति कम आत्म-जागरूक हो जाता है और इसके अलावा एक कृत्रिम निद्रावस्था में प्रवेश करता है. यह चरण परीक्षकों को विषय पर प्रश्न करने और वास्तविक उत्तर प्राप्त करने की परमिशन प्रदान करता है. नार्को टेस्ट फोरेंसिक विशेषज्ञ या फिर मनोवैज्ञानिक जांच की निगरानी में ही किया जाता है.

कैसे किया जाता है नार्को टेस्ट?

विशेषज्ञों के मुताबिक, नार्को टेस्ट (Narco Test in Hindi) में संबंधित अपराधी को कुछ इंजेक्शन या फिर दवाइयां दी जाती है. इस टेस्ट को करने पर ट्रूथ ड्रग नाम की एक साइकोऐक्टिव दवा दी जाती है. फिर इसके बाद एक इंजेक्शन लगाया जाता है, जिसक नाम सोडियम पेंटोथोल होता है.

यह भी पढ़ें: Gujarat Elections 2022: कांग्रेस ने जारी की 37 उम्मीदवारों की आखिरी सूची, जानें किसे कहां से मिला टिकट

इस दवा के प्रभाव से इंसान अर्धबेहोशी की हालत में चला जाता है. मतलब की वह पूरे तरीके से होश नहीं रहता है और न ही पूर्ण बेहोश होता है. तो ऐसी स्थिति में अपराधी से पूछे जाने वाले सवालों का सही-सही जवाब देता है, जिससे पूछताछ की जा रही है. वह शख्स अर्धबेहोशी की हालत में होता है. तो वह झूठ गढ़ पाने में नाकाम होता है.

यह भी पढ़ें: Noida Pet Policy: पालतू कुत्ते-बिल्ली के काटने पर देना होगा 10 हजार जुर्माना, जान लें Pets पालने के नए नियम

क्या नार्को टेस्ट 100 प्रतिशत सही होता है? जानें

बता दें कि नार्को एनालिसिस की सटीकता 100 प्रतिशत नहीं होती है. यह देखा गया है कि कुछ विषयों ने झूठे बयान दिए हैं. इस टेस्ट को जांच के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अवैज्ञानिक विधि माना जाता है.