1947 में जब भारत आजाद हुआ. तब हर तरफ लोगों
में खुशी थी. काफी समय के बाद लोग चैन की सांस ले रहे थे. क्योंकि आसपास कोई
अंग्रेज उनपर कोड़े बरसाने के लिए मौजूद नहीं था. जिस सितम को सहते सहते उनके घाव
नासूर बन चुके थे. अब उन घावों को भरने का वक्त आ चुका था. ऐसे में भारत के लिए एक
नई सुबह हुई थी. अब बारी थी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत देश को फिर से
उसके वास्तविक रूप में लाने की. क्योंकि अंग्रेजों ने भारतीयों पर इतने जुल्म ढाए
थे कि वह बेचारे जीवित तो थे.

लेकिन बेजान से हो चुके थे. तब ऐसे में भारत के पहले
प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा दिए गए एक भाषण ने हर भारतीय को एक
नया जन्म देने का काम किया था. तो चलिए बताते हैं ऐसा क्या कहा था उन्होंने अपने
भाषण में.

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“ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” (‘Tryst
with destiny’) के नाम से जाने जाने वाले इस भाषण को भारत के पहले प्रधानमंत्री
पंडित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में वायसराय लॉज
(वर्तमान राष्ट्रपति भवन) से दिया गया था. एनबीटी की एक रिपोर्ट की मानें, तो
उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत करते हुए कहा था कि यह एक ऐसा क्षण है, जो
इतिहास में यदा-कदा आता है, जब हम पुराने से नए में कदम रखते हैं,
जब
एक युग का अंत होता है, और जब एक राष्ट्र की लंबे समय से दमित आत्‍मा
नई आवाज पाती है. यकीकन इस विशिष्‍ट क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी
बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें.

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आजादी की उपलब्धि के जश्न को लेकर उन्होंने कहा
कि वह हमारी राह देख रही महान विजयों और उपलब्धियों की दिशा में महज एक कदम है. स्वतंत्रता
और शक्ति जिम्मेदारी भी लाते हैं. वह दायित्‍व संप्रभु भारत के लोगों का
प्रतिनिधित्‍व करने वाली इस सभा में निहित है. भारत के स्वतंत्र होने से पहले हमने
बहुत सारी दिक्कतें सहीं हैं. जिसके चलते हमारा दिल उन चीजों को याद करके बहुत
भारी है. वहीं अभी भी बहुत सी दिक्कतें और परेशानियां मौजूद हैं. बावजूद इसके
स्याह अतीत अब गुजर गया है और सुनहरा भविष्य हमारा आह्वान कर रहा है.

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वहीं इसके आगे उन्होंने कहा कि अब हमारा भविष्य
आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है, बल्कि उन प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के निरंतर प्रयत्न से हैं, जिनकी
हमने बारंबार शपथ ली है और आज भी ऐसा ही कर रहे हैं. ताकि हम उन कामों को पूरा कर
सकें. उन्होंने कहा कि जब तक किसी भी भारतीय की आंख में आंसू है. तब तक हमारा काम
पूरा नहीं माना जाएगा. इसलिए हमें सपनों को धरातल पर उतारने के लिए कठोर से कठोरतम
परिश्रम करते रहना होगा. जय हिंद.