भारत सरकार ने एअर इंडिया (Air India) के विनिवेश पर मीडिया में छपी खबरों का खंडन किया है. कई मीडिया वेबसाइट्‌स ने सूत्रों के हवाले से बताया था कि एअर इंडिया का नियंत्रण सरकार ने बिक्री प्रक्रिया के अनुसार सबसे बड़ी बोली लगाने वाले टाटा संस को दिया है.

न्यूज एजेंसी ANI ने सूत्रों के हवाले से बताया था कि नौकरशाहों के एक पैनल ने एयर इंडिया बेचने के लिए टाटा संस का चयन कर लिया है और अब बस केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह का इसपर मुहर लगाना रह गया है.

निजीकरण के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग, निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) के सचिव तुहिन कांता पांडे ने एक ट्वीट में कहा कि सरकार ने अभी तक एअर इंडिया के लिए वित्तीय बोलियों को मंजूरी नहीं दी है.

उन्होंने ट्वीट किया, “एअर इंडिया विनिवेश मामले में भारत सरकार द्वारा वित्तीय बोलियों को मंजूरी देने वाली मीडिया रिपोर्ट गलत हैं. मीडिया को सरकार के फैसले के बारे में सूचित किया जाएगा.”

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यदि टाटा की बोली स्वीकार कर ली जाती है, तो टाटा उसी सरकारी एअरलाइन का अधिग्रहण कर लेगा जिसकी स्थापना उसने ही की थी. जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा ने 1932 में एअरलाइन की स्थापना की थी. उस समय एअरलाइन को टाटा एअरलाइन्स कहा जाता था.

1946 में टाटा संस के विमानन प्रभाग को एअर इंडिया के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और 1948 में एअर इंडिया इंटरनेशनल को यूरोप के लिए उड़ानों के साथ लॉन्च किया गया था.

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अंतर्राष्ट्रीय सेवा भारत में पहली सार्वजनिक-निजी पार्टनरशिप में से एक थी, जिसमें सरकार की 49 प्रतिशत, टाटा की 25 प्रतिशत और जनता की शेष हिस्सेदारी थी. 1953 में एअर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया था.

एअर इंडिया 2007 में घरेलू ऑपरेटर इंडियन एअरलाइंस के साथ विलय के बाद से घाटे में है. एअरलाइन सफल बोली लगाने वाले को घरेलू हवाई अड्डों पर 4,400 घरेलू और 1,800 अंतरराष्ट्रीय लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट के साथ-साथ विदेशों में हवाई अड्डों पर 900 स्लॉट का नियंत्रण देगी. 

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