कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट ने किसानों को समझौता करने के लिए सरकार के दबाव को लेकर कहा कि, जब बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को ही नहीं मना सकी तो फिर किसानों को समझने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. उन्होंने कहा केंद्र सरकार को तीनों कृषि कानूनों को प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाना चाहिए और अपनी जिद छोड़कर इन कानूनों को तत्काल निरस्त करना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि जब भाजपा इन कानूनों को लेकर अपनी सहयोगियों शिरोमणि अकाली दल और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को नहीं मना पाई तो फिर वह किसानों को कैसे उम्मीद कर सकती है कि वे इन कानूनों को स्वीकार कर लेंगे.

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पायलट ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रस्तावित राजस्थान दौरे से एक दिन पहले यह टिप्पणी की है. राहुल गांधी तीनों कानूनों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए राजस्थान के कई इलाकों का दौरा करेंगे.

राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा कि केंद्र सरकार को किसानों एवं राज्यों से विचार-विमर्श करके तीनों कानूनों को वापस लेना चाहिए और ऐसे कानून लेकर आने चाहिए जो किसान चाहते हैं और ऐसा कुछ नहीं हो कि यह किसानों पर थोपा जाए.

उन्होंने कांग्रेस पर भाजपा की ओर से ‘यूटर्न’ का आरोप लगाए जाने को लेकर पलटवार किया और कहा कि भाजपा ‘यूटर्न’ की आदी है, जबकि कांग्रेस का रुख सभी मुद्दों को लेकर सतत रहा है.

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पायलट ने दावा किया कि भाजपा जीएसटी, मनरेगा, एफडीआई और कई अन्य मुद्दों पर पलटी मार चुकी है.

उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस ने कहा था कि हम कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश चाहते हैं, अधिक मंडियां चाहते हैं और व्यवस्था का उदारीकरण चाहते हैं. लेकिन हमने यह भी नहीं कहा कि हम किसानों के हितों के विपरीत कानून लाएंगे.’’

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि केंद सरकार को अपना ‘अहंकार’ और ‘जिद’ छोड़कर तीनों कानूनों को निरस्त करना चाहिए.

यह पूछे जाने पर कि इन कानूनों को लेकर कोई बीच की सहमति बन सकती है तो उन्होंने कहा कि किसानों ने बार-बार कहा है कि वे तीनों कानूनों की वापसी चाहते हैं और कांग्रेस उनकी इस मांग के साथ मजबूती से खड़ी है.

पायलट ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता है कि उन्हें (सरकार को) प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाना चाहिए.’’

उन्होंने तीनों कानूनों की अलोचना करते हुए कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि किसान संगठनों, राज्य सरकारों और अन्य संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श किए बिना ये कानून लाए गए.

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