मध्य प्रदेश में उपचुनाव के दौरान 32 दिन जनता का मनोरंजन करने वाले 28 विधानसभा सीटों के प्रत्याशियों के मतदाता अब 10 नवंबर को इन विधायकों के विद्रोह की उत्तर पुस्तिका जांचकर उसे सही या गलत बताने का फैसला करेंगे! चुनाव के इतिहास में पहली बार मध्यप्रदेश के गणितज्ञ हैरान होते नजर आ रहे है. सभी विश्लेषकों का अलग-अलग नजरिया देखने को मिल रहा है. दूसरी ओर इसकी यह वजह है कि क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत अलग-अलग आया है. कुछ विधानसभा में मतदाताओं ने बंपर वोटिंग की तो कुछ क्षेत्रों में मतदान 50 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच पाया. इन सब के बीच यह जरुर समझ आया गया की उपचुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस ने मंच से जो फिल्म मतदाताओं को दिखाई उसका कुछ ज्यादा असर होता नहीं दिखाई दिया. प्रमुख नेताओं के ‘बिगड़े बोल’ हो या मर्यादा को तार-तार करने और राजनीतिक शिष्टाचार की सीमा लांघते हुए दिये गए बयान मतदाताओं को मुद्दों से नहीं भटका सकें.मतदाताओं ने किन मुद्दों को ज्यादा तरजीह दी,यह मतगणना के दिन 10 नवंबर को नतीजों से पता चलेगा.

क्या समर्थन के साथ बनेगी सरकार ?

भाजपा की सरकार तो बनना तय लग रहा है लेकिन क्या समर्थन के साथ सरकार बनेगी या भाजपा अपने ही दम पर सरकार बनाएगी यह एक प्रश्न हैं? आपको बताते दे कि इस समय भाजपा की 107 सीटें हैं और निर्दलीय, सपा,बसपा के समर्थन से 114 सीटें हो रहीं हैं. भाजपा अगर 8 सीटें भी जीत जाती हैं तो वह अपने ही दल की 115 सीटों के साथ सरकार बना लेगी. वहीं दमोह के उप चुनाव को अभी समय है. ऐसे में 229 सीटों के लिहाज से वह बहुमत में रहेगी और 7 अन्य का समर्थन मिलाकर 122 सीटों तक पहुंच जाएगी,जो भाजपा सरकार के लिए बेहद सुरक्षित स्थिति होगी. यानी भाजपा के पास खोने को कुछ खास नहीं है, जबकि कांग्रेस को सत्ता सुख दोबारा पाना टेढ़ी खीर नजर आ रहा है.

क्या 69.68% मतदान भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है ?

मध्यप्रदेश के उपचुनाव में 28 सीटों पर 69.68% मतदान हुआ है. आपको यह बताते है कि अधिक मतदान भाजपा के हक में किस तरह से हो सकता हैं. दरअसल, 2018 के चुनाव में कांग्रेस की कर्ज माफी की घोषणा और सपाक्स का आरक्षण विरोधी आंदोलन, इन दो वजह से भाजपा की कश्ती किनारे पर आकर डूब गई थी. कांग्रेस ने तब 114 सीटें पाकर कोई तीर नहीं मार लिया था, क्योंकि भाजपा 109 पर अटकी थी। ऐसे में कर्ज माफी की विफलता से विचलित किसान वापस भाजपा की तरफ लौटा है और सपाक्स अपना तेज खो चुकी है। फिर केंद्र में भी उसकी सरकार है. दूसरी ओर कमलनाथ गांव खेड़े तक पहुंच नहीं पाए तो वहीं शिवराज सिंह चौहान गांव की गलियों, फलियों तक और बहनों, भांजियों के दिलों में उतरे हुए नजर आए.

28 ​सीटों में से कुछ सीट पर चौंकाने वाले आ सकते हैं नतीजे

प्रदेश के चंबल-ग्वालियर अंचल में सर्वाधिक 16 सीटों के लिए मतदान हुआ है। आपको बता दे कि एक हिस्से में अच्छा मतदान हुआ तो वहीं दूसरे में बहुत कम. इसलिए निष्कर्ष अलग-अलग निकल रहे हैं. कहा जा रहा है कि चंबल में कांग्रेस को ज्यादा सफलता मिलेगी तो ग्वालियर अंचल में भाजपा को सफलता मिलेगी. कुल मिलाकर यहां से भाजपा-कांग्रेस के बीच जीत-हार का आंकड़ा बराबरी पर आकर टिक सकता है.

अब मालवा-निमाड़ अंचल की बात करें तो यहां भी मतदान का रुझान एक जैसा नहीं दिखा. कुछ क्षेत्रों में अच्छी वोटिंग हुई तो कहीं अपेक्षा से कम मतदान हुआ. बुंदेलखंड की दोनों सीटों में भी मतदान का प्रतिशत अलग-अलग रहा। यहां भी विश्लेषक दोनों सीटों में किसी एक दल की जीत का दावा करने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में मतदाताओं का रुख भांपना कठिन हो रहा है. इस तरह मतदान के रुझान एवं मतदाताओं के रुख ने इस बार गणितज्ञों को भी हैरान कर दिया है.

क्या चौंकाने वाले आ सकते हैं नतीजे ?

कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए 25 बागियों में कितने जीतते हैं और कितने को हार का सामना करना पड़ेगा, यह दावा फिलहाल कोई नहीं कर पा रहा. भाजपा-कांग्रेस अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन विश्लेषकों में एक बात पर लगभग सहमति यह भी बन रही है ​कि उपचुनाव में एक दर्जन बागियों के भाग्य पर बिजली गिर सकती है. मतदाता इन्हें बगावत का दंड देकर घर बैठा सकते हैं, हालांकि कुछ की राय है कि नतीजे चौकाने वाले आएंगे.यह कांग्रेस पर भारी पड़ सकते हैं, जो संभावनाएं इन उपचुनाव की शुरुआत में अंकुरित हुई थीं, वे अंततः मतदान की समाप्ति पर पल्लवित ही हुईं हैं. वह संभावना अनिश्चय,रहस्य,रोमांच की थी, जो बरकरार है.

एक तरफ भाजपा नेतृत्व है, जो करीब आधी सीटों पर 69.68% प्रतिशत मतदान को अपना बढ़ा हुआ समर्थन बता रहा है तो दूसरी तरफ कांग्रेस भी 28 सीटों पर विजय होने का दावा कर रही हैं. वैसे सोलह आने सच तो यही है कि मप्र में भाजपा सरकार बरकरार रहेगी, लेकिन क्या समर्थन के साथ सरकार बनेगी या भाजपा अपने ही दम पर सरकार बनाएगी यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा.